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मां बाप के अधूरे कार्यों को पूरा करना ही वास्तविक श्राद्ध है

फ्यूचर लाइन टाईम्स



जीवन मरण तो विधि का विधान हैं जिसका जन्म हुआ हैं उसकी मृत्यु निश्चित हैं अजर अमर शरीर नहीं आत्मा हैं मनुष्य के अच्छे कार्य ही उसके जन्म सार्थकता का प्रमाण हैं बेटा बेटी या परिजन कोई अच्छा कार्य करता हैं तो सबसे ज़्यादा ख़ुशी व आत्म संतुष्टि माँ बाप व परिजनों को होती हैं चाहे व जीवित हैं अथवा परलोक वासी हों गए हैं अच्छें कार्यों को किसी मुहूर्त की ज़रूरत नहीं होती माँ बाप का अंश ही हमारे जन्म का आधार हैं इसलिए वो हमारे रोम रोम में हमेशा विद्यमान रहते है और हमारे हर अच्छे और बुरे कार्य के परिणामस्वरूप होने वाले हर्ष और विषाद के शारीरिक रूप से अनुपस्थित होते हुए भी जीवित अथवा स्वर्गीय होने बावजूद महसूस करते हैं हम श्राद के नाम पर स्वर्गीय परिजनों को ख़ुश करने हेतु यथा सामर्थ्य स्वादिष्ट भोजन बनाकर थोड़ा बहुत पशु पक्षियों को दान कर और स्वयं भी सेवन कर फ़र्ज़ निभाने के टोटका से इतिश्री कर ख़ुश हों जाते हैं जबकि मेरे विचार से श्राद का सही अर्थ स्वर्गीय अथवा जीवित माँ बाप तथा परिजनों के विचार को फलीभूत करने हेतु उनके अधूरे कार्यों का शुभारंभ करने के प्रण लेने हेतु अपने आपको अर्पण करने का सबसे उत्तम समय हैं धर्म के अनुसार भी यह ऐसा समय हैं जब स्वर्गवासी हुए परिजन भी आपके पास आते हैं आपके मन मस्तिष्क में पूरे समय उनकी यादें उनसे जुड़े संस्मरण से आप अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं आप उनको भोजन अर्पित करते हैं इससे ज़्यादा शुभ घड़ी कोनसी हों सकती हैं तब ऐसे समय किया गया कोई भी नया कार्य अशुभ कैसे हों सकता हैं अच्छे कार्य का शुभारम्भ कर स्वर्गीय परिजनों को सही मायने में तर्पण करने का सबसे उत्तम समय हैं बशर्ते की समाज अंधविश्वास से अपने आपको मुक्त कर विचार करे


 


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