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फ्यूचर लाइन टाईम्स
ग्रेटर नोएडा दीपक कुमार भाटी ने कहा कि आज ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ऐसे कार्य कर रहा है जैसे अंग्रेजी हकूमत कार्य कर रही हो आज के समाचार पत्रों से ज्ञात हुआ है कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने बड़ी बड़ी योजनाओं के लिए जमीन उपलब्ध करा रही है जमीन का क्षेत्रफल लगभग 5 एकड़ तक के भूखण्ड होंगे। एक तरफ तो प्राधिकरण के पास बड़े बड़े पूंजीपतियों व उधोगपतियों के लिए पर्याप्त जमीन है। लेकिन उस किसान के लिए जमीन नही है जिस किसान ने इस शहर के विकास के लिए जमीन दी और प्राधिकरण ने ओने पौने दामो में जमीन लेकर 6% व 10% के भूखण्ड देने का करार किसान से किया लेकिन किसान के लिए इनके पास जमीन नही है। और उद्योगपति के लिए जमीन है। मेरे गाँव साकीपुर व रसूलपुर की जमीन का अधिग्रहण वर्ष 2003 व 2005 में हुआ था लेकिन साकीपुर के किसानों को 6%के भूखण्ड आजतक नही मिल पाए है इन 17 सालों में न जाने कितने किसान भूखण्ड का सपना लेकर स्वर्ग सिधार गए है। देखते ही देखते बिल्डिंगें खड़ी हो गयी किसान के पक्ष में माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने 6 के बजाय10% भूखण्ड का आदेश पारित कर दिया क्योकि 1999 के समझौते व तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों को 10%विकसित भूखण्ड देने का आदेश दिया था पर प्राधिकरण ने उसमे से भी एक तरकीब निकली की आपको मात्र 5% प्लाट ही मिलेगा क्योकि 5% जमीन रास्तो में चली जाती है । माननीय न्यायालय ने इसे 10% किया लेकिन आदेश देते वक्त कोई समय सीमा अपने आदेश में नही दी। इसका फायदा प्राधिकरण खूब उठा रहा है।आदेश को हुए भी 9 वर्ष बीत गए । अब ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने ज्यादातर किसानों को पत्र लिखा है कि प्राधिकरण के पास किसानों को भूखण्ड देने के लिए पर्याप्त जमीन नहीं है इसलिए आपको जब आपकी जमीन अधिग्रहण की थी उस समय के आवंटन दर के हिसाब से आपके भूखण्ड का मूल्य निर्धारित किया है इसमे कुछ किसानों के प्लाट का मूल्य 750 रुपये मीटर भी है ।आप उसके बदले जो प्राधिकरण के पास सड़ा हुआ माल यानी वह भूखण्ड व दुकान जिन्हें आवंटियों ने घाटे का सौदा देखकर छोड़ दिया उसको किसानों को दिया जाएगा । लेकिन एक महीने बाद ही बड़ी बड़ी कम्पनियों के लिए तुरन्त जमीन की उपलब्धता इस ईस्ट इंडिया कम्पनी के पास हो गयी । क्या यह प्राधिकरण की सही नीति है ? क्या यह अन्नदाता शोषण नही है? क्या किसान के हित मे प्राधिकरण में कोई नियम नही कोई समय सीमा नही? क्या किसान अछूत है या पूंजीपति व प्राधिकरण के अधिकारी किसान को बसता नही देखना चाहते ? क्या ऐसी नीतियों से बड़े आंदोलन जन्म नही लेते ? जब कुछ बड़ा भट्टा पारसौल व घोड़ी बछेड़ा की तरह होता है जब सारे अधिकारी बुद्धिजीवी व राजनीतिक दल जाग जाते है। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण यह भेदभाव व अन्याय बन्द करो।
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