फ्यूचर लाइन टाईम्स
31 जुलाई /बलिदान दिवस
सरदार शहीद उधम सिंह का जन्म पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में 26 दिसम्बर 1899 को हुआ था...जन्म के दो वर्ष के अंदर ही उनकी मां का निधन हो गया था और आठ वर्ष की आयु में पिता का भी देहांत हो गया था इसके बाद उन्होंने अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में अपना काफी समय गुजारा था...लेकिन 1917 में उनके बड़े भाई की मौत के बाद वो बिल्कुल अकेले रह गए थे...1919 में वो अनाथालय से निकल गए और आजादी की मुहिम में जुट गए...इसी दौरान जलियांवाला बाग की घटना घट गई...इसके बाद उनके जीवन का केवल एक ही मकसद था जनरल डायर की मौत...इसके लिए उन्हें 21 वर्षों तक सही वक्त का इंतजार करना पड़ा था...जनरल डायर को उसके किए की सजा देने के लिए उधम सिंह ने नाम बदल-बदल कर अफ्रीका नैरोबी ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की वर्ष 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां 9 एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे...वहां उन्होंने एक कार और छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीदी अब केवल सही वक्त का इंतजार था...ये सही समय छह साल बाद आया... जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी...यहां पर माइकल ओ डायर भी वक्ता के तौर पर शामिल था...उधम सिंह जानते थे कि इससे अच्छा समय उन्हें दोबारा नहीं मिलने वाला है...इसलिए वो भी समय से बैठक में पहुंच गए...उन्होंने अपनी रिवाल्वर को छिपाने का एक नायाब तरीका तलाश कर लिया था...उन्होंने एक मोटी किताब के पन्नों को बीच में इस तरह से काटा कि उसमें रिवाल्वर आसानी से छिप सके...इसको लेकर वो बैठक में पहुंचे थे बैठक के बाद उधम सिंह को मौका मिल गया और उन्होंने दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं...डायर को दो गोलियां लगीं और उसके वहीं प्राण निकल गए...इस घटना के बाद उन्हें भागने का मौका था लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और खुद को आसानी से गिरफ्तार होने दिया...वो चाहते थे कि जनरल डायर की करतूत को दुनिया पहचाने गिरफ्तारी के बाद उनके ऊपर मुकदमा चलाया गया और 4 जून को उन्हें फांसी की सजा दी गई। 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।
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