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फ्यूचर लाइन टाईम्स
जिस तरह से दीमक बांबी को धीरे धीरे बनाती है उसी प्रकार से स्त्री पुरुषों को किसी को भी पीड़ा न पहुंचाकर अपने अगले जन्म के सुख के लिए धीरे धीरे धर्म का संचय करें। क्योंकि परलोक में न माता न पिता न पुत्र न स्त्री ना ही सगे-सम्बन्धी सहायता कर सकते हैं किन्तु एक धर्म ही सहायक होता है।
अकेला ही जीव जन्म और मरण को प्राप्त होता है वो ही धर्म का फल सुख भोगता है और अधर्म का फल दुःख भी वही अकेला भोगता है। यह भी समझ लो कि कुटुम्भ में एक पुरुष पाप करके पदार्थ लाता है और सारा कुटुम्भ उसको भोगता है , तो भोगने वाले अन्य सदस्य दोषभागी नहीं होते हैं किन्तु अधर्म का कर्ता ही दोषभागी होता है।
जब कोई किसी का सम्बन्धी मर जाता है उसको मिटटी के ढेले के समान भूमि में छोड़कर पीठ देकर बंधूु वर्ग विमुख होकर चले जाते हैं , कोई उसके साथ जानेवाला नहीं होता है , किन्तु एक धर्म ही है जो उसका संगी होता है उसका पक्का साथी होता है और उसके साथ जाता है। आओ लौटें वेदों की ओर
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