फ्यूचर लाइन टाईम्स
गाजियाबाद। आतंकवादी 6माह में एक घटना करता है और हमेशा बम नहीं फोड़ सकता ।जातिवादी 'जातिबम' अपने नाम,काम,यात्रा,आराम,
खान-पान,कार्यक्रम आदि हर स्थिति में साथ लेकर चलता है और रोज कहीं न कहीं 'जातिबम' फोड़ता रहता है ,वह बच्चों,बुजुर्गो, महिलाओं मे फर्क नही करता लगातार दहशत मे रखता है कमजोरों को।आतंकवादी की शर्त ,समय और परिस्थिति से सीमित होती है पर जातिवादी तो असीमित बेरोक उत्पीड़न करने का अधिकार लेकर पैदा होता है।आतंकवादी समझौता करते समय बराबरी को पसंद करता है।जातिवादी दया कर सकता है अहसान कर सकता है,मजबूरी मे शादी ,चरण स्पर्श कर सकता है पर हिस्सा नही दे सकता।आतंकवादी मांग रखता है जातिवादी मांगने पर भी नही देता।आतंकवादी अपने परिवारीजन के प्रति दया रखता है पर जातिवादी अपना जातिबम बचाने के लिए अपनी बहन बेटी की भी गर्दन काट देता है।आतंकवादी इतिहास ,भूगोल,राजनीति बदलने की बात करता है पर जातिवादी अफवाह,झूठ ,षड्यंत्र, पद का दुरुपयोग और ज्ञान,विज्ञान का भी दुरुपयोग जातिबम को बचाने के लिये करता है।वह परिवर्तन नही सामाजिक यथास्थिति के लिये गुलाम बनने ,गरीब बनने और निरीह बनने को भी तैयार है।आतंकवादी को कानून और चेहरा दिखने का खौफ है जातिवादी बलात्कार,नंगा करके घुमाता है, माॅब लिन्चिग कर्ता है ,वीडियो बनाता है और वायरल कर्ता है और अपनी जाति का खुले आम समर्थन पाता है।सरकारी पद बैठकर आतंकवादी बम नहीं फोड़ सकता पर जातिवादी शान से जातिबम फोड़ता रहता है उसे कानून या नैतिकता का डर नहीं रहता।आंतकवादी घटनाओं मे होने वाले हत्या, बलात्कार की संख्या और जातिवादी हत्या, बलात्कारो की संख्या में जमीन आसमान का अंतर है।आतंकवाद गरीबी,पिछड़ापन और बेरोजगारी का अप्रत्यक्ष कारण हो सकता है पर जाति गरीबी ,पिछड़ापन ,बेरोजगारी और अन्याय का प्रत्यक्ष कारण है।आतंकवाद भी अमानवीय है जातिवाद भी अमानवीय है पर जाति को पवित्र और ईश्वरीय मानना क्यों उचित है।।आतंकवादी और अपराधी का पूरा परिवार उसके कृत्यों के साथ खडा नही होता पर जाति अत्याचार में जाति समर्थन बिना मांगे मिलता है ।आतंकवाद पीड़ित को पूरी दुनिया से समर्थन मिलता है,जाति अत्याचार पीडित का साथ भयभीत पड़ौसी भी मुश्किल से देते हैं ।आतंकवाद पीड़ित के पास घटना के अनावरण के लिये बहुत लोग पहुचते हैं, जाति अत्याचार पीड़ित अपनी शिकायत लेकर मारा -मारा भटकता है।आतंकवादी अपनी मांग के लिये घटना करता है ,जातिवादी पीड़ित के मान मर्दन के लिए अत्याचारकरता है।आतंकवादी को लाभ मिलने के बाद संतोष हो सकता जातिवादी को आनंद आता है और अधिक और अधिक उत्पीड़न में वह संतुष्ट नही किया जा सकता।जाति के खिलाफ भी कानून बनना चाहिए।
जाति आधारित नाम हटाये जाने हेतु ज्ञापन भी दिये जायें और हम अपनी भाषा,चर्चा, व्यवहार से भी हटायें पर बिना कानून यह संभव नहीं है
जाति होनी चाहिए
1.गांव के नाम से
2.मौहल्लों के नाम
3.सरकारी दफ्तर की नाम पट्टिका
4.NGOs के नामों से
5.शादी के विज्ञापन से।
6.गलियों के नाम से।
7.वाहनों पर
8.एपार्टमेंट
9.नामों से,उपनामों से
10.स्कूल/कालेज
11.धर्मशालाओं
12.मेलों/उत्सवों से।
आतंकवादी तो अपने लिये राष्ट्र मांगता है ,जातिवादी तो बने बनाये राष्ट्र और संविधान को भी नही मानता। आतंक और जाति आतंकवाद दोनों समाप्त होने चाहिए ।अमानवीय सिद्धांतो का सभ्य समाज मे स्थान नही है ।कानून का शासन ही कल्याणकारी राज्य के लिये सर्वोत्तम है।
डाॅ बी पी अशोक
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