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सभी मनुष्य पुण्य का फल सुख तो चाहते हैं लेकिन....

फ्यूचर लाइन टाईम्स 



 गाजियाबाद : "पुण्यस्य फलमिच्छन्ति पुण्यं नेच्छन्ति मानवा:


न पापफलमिच्छन्ति पापं कुर्वन्ति मानवा:।।"


     अर्थात सभी मनुष्य पुण्य का फल (सुख) तो चाहते हैं, पर पुण्य (सुख के लिए शुभ कर्म) नहीं करते इसी प्रकार पाप का फल (दुःख) कोई नहीं चाहता किन्तु फिर भी पाप (अशुभ कर्म) करते हैं। 


       न्याय दर्शन के भाष्य (१/१/२) में वात्सायन मुनि ने बताया कि दुःख का कारण जन्म है, और जन्म का कारण अच्छे-बुरे कर्म हैं, कर्मों का कारण राग, द्वेष, और मोह हैं, राग, द्वेष और मोह का कारण मिथ्याज्ञान है।


       मनुष्य मन, वाणी और शरीर के द्वारा शुभ या अशुभ कर्म करता है। जिसके परिणामस्वरूप परमपिता परमात्मा की न्याय व्यवस्था के अनुसार सुख-दुख प्राप्त होता है। मन से तीन, वाणी से चार और शरीर से तीन प्रकार के कर्म मनुष्य करता है। इस तरह कुल १० प्रकार के शुभ या अशुभ कर्म मनुष्य करता है।


       मिथ्या ज्ञान के कारण १० अशुभ कर्म निन्म प्रकार के हैं।


 मन के द्वारा - १ - किसी भी प्राणी से द्वेष रखना। किसी का अहित सोचना।


    २ - किसी के धन को छल-कपट से लेने का विचार करना।


   ३ - ईश्वर के अस्तित्व, आत्मा के अस्तित्व और कर्म फल व्यवस्था को न मानना।


    वाणी के द्वारा - १ - मिथ्याभाषण करना। मिथ्याभाषण करना महापाप कहा गया है। उपनिषद कहता है कि, "नानृतात पातकं परम" अर्थात असत्य भाषण सबसे बड़ा पाप है।


    २ - कठोर भाषण। वाणी से किसी को अकारण कष्ट देना भी अशुभ कर्म है। 


    ३ - किसी की निन्दा करना अर्थात गुणों में दोष लगाना और दोषों में गुण बताना भी अशुभ कर्म है।


     ४ - प्रसंग के विपरीत बोलना अर्थात विषय कुछ और चल रहा हो और बात कुछ और करना। यह भी वाणी का अशुभ कर्म है।


     शरीर के द्वारा - १ - हिंसा करना अर्थात मांस भक्षण करना, मांस आदि की प्राप्ति हेतु जीवों की हत्या करना।


     २ - परस्त्रीगामी होना, व्यभिचार करना भी अशुभ कर्म है।


     ३ - अस्तेय अर्थात किसी के धन अथवा अन्य वस्तुओं की चोरी करना।


      यह सब कर्म अशुभ कर्म हैं। यह सब पाप कर्म हैं। इनके फल के रूप में दुख की प्राप्ति होती है। यह सब कर्म मिथ्या ज्ञान के कारण ही होते हैं। जब मिथ्या ज्ञान दूर होकर तत्व ज्ञान ( सत्य ज्ञान ) बढ़ता है तो निम्न शुभ कर्मों का मनुष्य करता है।


     शरीर के द्वारा - १ - धन, भूमि, वस्त्र, भोजन आदि का दान करना।


    २ - निर्बल, धार्मिक, सत्पुरुषों की रक्षा करना


    ३ - विद्वानों, सत्पुरुषों, वृद्धों ( आयु वृद्ध व ज्ञान वृद्ध दोनों ) की सेवा करना।


        ये सब शुभ कर्म हैं। जिनका फल सुख है। ये सब शुभ कर्म तत्वज्ञान की प्राप्ति पर ही सम्भव हैं। अतः वेदादि सत्य शास्त्रों के द्वारा तत्व ज्ञान को प्राप्त करने का उपाय करना चाहिए तभी शुभ कर्मों की वृद्धि और सुख की वॄद्धि सम्भव है। ये सब सकाम कर्म हैं। 


यदि तत्व ज्ञान के द्वारा निष्काम कर्म ही किये जायें तो परमात्मा के परम आनन्द अर्थात मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही मनुष्य जीवन का मुख्य लक्ष्य है।


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