फ्यूचर लाइन टाईम्स
जनपद गौतम बुध नगर , मनोज तोमर ब्यूरो चीफ : कोरोना काल में प्राइवेट शिक्षक के दर्द को समझने वाला कोई नहीं ::डॉक्टर देवेंद्र कुमार नागर गौतम बुध नगर के गांव दुजाना निवासी डॉक्टर देवेंद्र कुमार नागर ने बताया कि कोरोना काल में संपूर्ण विश्व में मजदूर से लेकर बड़े-बड़े उद्योगपतियों के नफा नुकसान पर क्रियाप्रतिक्रिया,चर्चाएं शासन-प्रशासन,विपक्ष, सामाजिक संगठनों, बुद्धिजीवियों, समाज सुधारको के द्वारा देखने को बहुत अधिक मिल रही है यह अच्छी बात है लेकिन राष्ट्र निर्माता,समाज के पथ प्रदर्शक,मार्गदर्शक ,पृथ्वी पर भगवान के समान दर्जा प्राप्त विशेष कर प्राइवेट विद्यालय में शिक्षण करने वाले गुरु, शिक्षक,अध्यापक पर कोई विशेष चर्चा करने के लिए तैयार नहीं है इनका दर्द किसी को दिखाई नहीं दे रहा है, दुर्भाग्य की बात तो देखिए कोई शिक्षक संगठन या फिर शिक्षक एमएलसी प्रत्याशी को इनकी वोट तो चाहिए परंतु शिक्षकों के दर्द पर मलहम कोई और ही लगाएं संपूर्ण भारत मैं प्राइवेट शिक्षकों के वेतन की बात करने लगे तो इनका वेतन रोजाना मजदूरी करने वाले मजदूर से काफी कम है यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है प्राइवेट विद्यालयों में शिक्षकों का मासिक वेतन लगभग 8000 से लेकर 30,000 के मध्य में ही सिमट जाता है इसी में उन्हें घर का किराया,बच्चों की फीस,घर का खर्चा, हारी बीमारी एवं अन्य की व्यवस्था करनी होती है एक तरफ नो स्कूल नो फीस की मुहिम अभिभावकों ने छेड़ रखी है दूसरी तरफ विद्यालय प्रबंधकों ने नो शिक्षण नो वेतन का फार्मूला अपना रखा है ऐसी विकट स्थिति में लाखों-करोड़ों प्राइवेट शिक्षकों के सामने दो वक्त के खाने के लाले पड़े गए हैं क्या ऐसी मानसिक स्थिति में आप शिक्षक से अच्छे राष्ट्र निर्माण,अच्छे मार्गदर्शक, अच्छी शिक्षण व्यवस्था की कल्पना कर सकते हो मेरे अनुसार तो नहीं ऐसी संकट की घड़ी में विशेष रुप से प्राइवेट शिक्षकों के साथ शासन प्रशासन, अभिभावकों, विद्यालय प्रबंधकों, मकान मालिकको को इनके विषय में सोचना चाहिए शासन प्रशासन ने अभिभावकों को 3 महीने की फीस न देने का फरमान तो निकाल दिया है कुछ विद्यालय प्रबंधकों ने मानवता के नाते स्वयं आगे आकर 3 महीने की फीस माफ भी कर दी है ऐसे प्रबंधकों की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है लेकिन एक तरफ उन्होंने अभिभावकों को राहत दी है तो दूसरी तरफ उनके सामने शिक्षकों को वेतन देने की बड़ी समस्या खड़ी हो गई है ऐसे में इस समस्या को हल करने के लिए शासन प्रशासन की तरफ से जब तक विद्यालय नहीं खुल रहे हैं तब तक प्रत्येक शिक्षक के खाते में प्रत्येक माह एक निश्चित धनराशि भत्ते के रूप में ईमानदारी के साथ डालने का प्रावधान लाना चाहिए तथा अभिभावकों एवं प्रबंधकों को मीटिंग कर पहले विद्यालयों के द्वारा शिक्षकों के वेतन पर जो खर्चा आता था उसका आधा कर उसे प्रत्येक बच्चे पर फीस के रूप में डाल देना चाहिए तथा प्रत्येक अभिभावक को यह फीस ईमानदारी के साथ विद्यालय में जमा करनी चाहिए तथा विद्यालय प्रबंधकों को ईमानदारी के साथ महीने का आधा वेतन शिक्षकों के खाते में पहुंचा देना चाहिए और जो शिक्षक किराए के मकान में रहते हैं उन मकान मालिकों को ऐसे शिक्षकों का आधा किराया माफ कर देना चाहिये इस प्रकार हम शिक्षकों के दर्द को कुछ कम कर पाएंगे और भविष्य में हम शिक्षकों से अपने बच्चों के सकारात्मक शिक्षण की अपेक्षा कर पायेंगे
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