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वैदिक मान्यताएँ , ईश्वर की सत्ता के प्रमाण 3

 फ्यूचर लाइन टाईम्स



वैदिक मान्यताएँ


ईश्वर की सत्ता के प्रमाण


3) कार्य - कर्ता सम्बन्ध ; 
     सृष्टि - आयोजन


ईश्वर की सत्ता स्वतः सिद्ध है परन्तु भौतिकवाद और विकासवाद की झंकार से भ्रमित हुए कुछ लोग ईश्वर की सत्ता में संदेह करते हैं। उनकी शंका का समाधान करना अनिवार्य है। संसार में दो प्रकार के व्यक्ति हैं -- आस्तिक  Theist और नास्तिक Atheist। आस्तिक वे हैं जो ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखते हैं और नास्तिक वे जो उसकी सत्ता अस्तित्व/ Existence में विश्वास नहीं रखते। 


सत्  , सत्ता, आस्तिक और अस्तित्व शब्द संस्कृत की ‘अस् भुवि’ धातु से निष्पन्न हुए हैं जिसका अर्थ है विद्यमान रहना To  exist वेद, उपनिषद्  , दर्शन- शास्त्र एवं हमारे अन्य धर्मग्रन्थों में ईश्वर की सत्ता के अकाट्य प्रमाण मिलते हैं। संक्षेप में, ईश्वर का अस्तित्व मुख्यतः तीन दृष्टियों से माना जाता है -- 
1) जगत् के निर्माता के रूप में;
2) जीवात्मा के कर्मानुसार फलदाता के रूप में;
3) सृष्टि के प्रारम्भ में ईश्वरीय ज्ञान वेदों के उपदेष्टा के रूप में। 


पाश्चात्य दर्शन में भी ईश्वर के अस्तित्व के विषय में विस्तृत चर्चा है। मुख्यतः वे प्रमाण Proofs /Arguments हैः Ontological सत्त्व विचार सम्बन्धी Nature of Existence,
Cosmological  जगत्-उत्पत्ति सम्बन्धी, Teleological कार्य-कारण सम्बन्धी, Ethical नैतिक।


अब तर्क Logic के अङ्गों अनुमान (Inference) और उपमान Analogy उपमान आदि द्वारा ईश्वर के अस्तित्व के विषय में निम्न दस प्रमाण दिये जाते हैं :
1) कार्य - कर्ता सम्बन्ध
2) सृष्टि - आयोजन
3) सृष्टि - धारण
4) सृष्टि - विधान
5) विभिन्न धर्मों की निष्ठा
6) मानव-मात्र की आस्था
7) अन्तरात्मा की आवाज़
8) न्याय - विधान
9) आदि ज्ञान का स्रोत
10) आत्म - अनुभूति


उपरोक्त प्रमाणों का विवेचन एक-एक या दो- दो के युगल में धारावाहिक रूप में प्रस्तुत  किया जाएँगा।


कार्य-कर्ता सम्बन्ध


कार्य और कर्ता का अटल सम्बन्ध है। यदि कोई कार्य हुआ है, उसका कर्ता अवश्य होगा। घड़े की कृति से  कुम्हार का और घड़ी की कृति से घड़ीसाज का अस्तित्व सिद्ध होता है। 


वैशेषिक दर्शन का सूत्र 4.1.3 है : कारणभावात् कार्यभावः अर्थात् कारण के होने पर होता है कार्य। 


यह समस्त दृश्यमान जगत् प्रत्यक्ष है। इसकी सृष्टि अर्थात् रचना हुई है, इसका कोई न कोई रचयिता होना चाहिये। यह भी स्वतः सिद्ध है कि जगत् Cosmos की सृष्टि मानव के संसार में पदार्पण से पहले हुई है, अतः मानव इस जगत् का स्रष्टा नहीं हो सकता और न ही उसमें ऐसी क्षमता दिखाई देती है। 


अतः जगत् की उत्पत्ति का निमित्त कारण Efficient Cause कोई सर्वशत्तिमान् सत्ता सिद्ध होती है जिसे ईश्वर कहा जाता है। 


इस विषय में वेदान्तदर्शन का सूत्र 2.2.1 है  : 'जन्माद्यस्य यतः’ अर्थात् जिससे इस संसार की उत्पत्ति-प्रलय होती है, वह ब्रह्म ईश्वर है।


2) सृष्टि आयोजन


कुछ दार्शनिक और वैज्ञानिक तर्क देते हैं कि जैसे अग्नि में उष्णता है, पानी में शीतलता है, अथवा नीले रंग में पीला रंग मिलाने पर स्वतः हरा रंग उत्पन्न हो जाता है, वैसे प्रकृति स्वभाव से अपने आप जगत् की रचना कर लेती है। 


उष्णतादि केवल तत्त्वों के गुण हैं, इनमें आयोजन की शक्ति नहीं। सृष्टि रचना में एक विशिष्ट आयोजन Design पाया जाता है जो केवल कोई चेतन शक्ति Intelligence ही निष्पन्न कर सकती है। 


वेदान्त दर्शन का मत है ‘रचनानुपपत्तेश्चनानुमानम्’। ‘प्रवृत्तिश्च’ 2.2.1-2  अर्थात् व्यवहार में रचना की उपपत्ति किसी वस्तु का स्वयं उत्पन्न हो जाना न पाये जाने से और अनुमान से ऐसा न सिद्ध होने से प्रकृति सृष्टि का निमित्तकारण Efficient Cause नहीं है। 


इसके अतिरिक्त सृष्टि की रचना के लिये प्रवृत्ति चेष्टा, इच्छा, संकल्प की आवश्यकता होती है जो जड़ प्रकृति में नहीं है। उदाहरणार्थ ईंट, पत्थर, लोहा, चूना, पानी आदि पदार्थ एक स्थान पर होते हुए भी किसी भवन में स्वतः परिणत नहीं हो सकते क्यों कि वे ऐसा करने की इच्छा नहीं कर सकते।


इस संदर्भ में पाश्चात्य दार्शनिक फलिन्ट Flint का यह कथन अतीव सटीक है : प्रकृति के परमाणुओं ने परमात्मा की क्रिया के बिना स्वयं ही इस विचित्र सृष्टि-रचना की यह बात मानना, इस बात के मानने से भी अधिक युक्तिशून्य है कि अंग्रेजी भाषा के अक्षरों ने शेक्सपियर नाम से प्रसिद्ध महाकवि के मानवी मस्तिष्क की सहायता के बिना ही शेक्सपियर के महान् नाटकों की रचना कर डाली। यह मानना कि इन परमाणुओं ने बिना किसी नियम अथवा बुद्धि प्रेरणा के ,  स्वयं ही इस प्रकार की सुन्दर, जटिल और लाभप्रद वस्तुओं से युक्त  संसार की रचना कर दी, अन्धविश्वास की उस सीमा का भी उल्लघंन कर जाना है जो आज तक किसी बड़े से बड़े अन्धविश्वासी मतमतान्तर अनुयायी ने दिखाई है। 


जगत् की कृति को देख कर विश्वविख्यात दार्शनिक न्यूटन इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि इसका निर्माता ईश्वर है : एक निराकार, चेतन, बुद्धिमान, सर्वव्यापक परम-आत्मा Supreme Being है जो सब वस्तुओं को यथार्थ रूप में सम्पूर्णतया देखता और अन्तर्यामी रूप में ठीक-ठीक जानता है।
पादपाठ


The intellect makes itself visible in the act of thinking; 
God makes Himself visible in the act of creating.
 ---  Corpus Hermetica
बुद्धि अपने आप को चिंतन प्रक्रिया में व्यक्त करती है और ईश्वर सृष्टि रचना में अपने आप को व्यक्त करता है --- कार्पस हर्मिटिका


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