फ्यूचर लाइन टाईम्स
आज मानव को समय - समय पर अनेक प्रकार के संकटों का सामना करना होता है | सामने से , पीछे से , ऊपर से नीचे से अनेक प्रकार के संकटों से यह प्राणी घिरा रहता है | इस मन्त्र में परमपिता परमात्मा से सब और से संकट रहित करने की प्रार्थना इस प्रकार की गई है :-
अभयं न: करत्यन्तरिक्षमभयं द्यावापृथिवी उभे इमे | अभयं
पश्चादभयं पुरस्तादत्तरादधरादभयं नो अस्तु || अथर्व. १९.१५.५ ||
अथर्ववेद के इस मन्त्र में परमपिता परमात्मा ने प्राणी मात्र को विभिन्न दिशाओं में छुपे शत्रुओं से सावधान करते हुए कहा है कि :- बीच का लोक हमारे लिए अभय करे , पृथिवीलोक और द्युलोक यह दोनों लोक भी हमारे लिए अभय करें , आगे ऊपर - -नीचे सब और से अभय हों | इस संक्षिप्त मंत्रार्थ को सामने रखते हुए हम मन्त्र की विषद व्याख्या इस प्रकार करते हैं :-
प्राणी के लिए संकट लाने वाले एक नहीं अनेक स्थान हैं , जहाँ से नित्य शत्रु लोग आक्रमण करते रहते हैं | फिर चाहे वह रोग के रूप में शत्रु हो या फिर हिंसा करने वाला शत्रु हो या फिर कोई प्राकृतिक आपदा हो | इन सब से बचने के लिए प्राणी को अनेक उपाय करने होते हैं अनेक प्रकार की साधना करनी होती है |
१ . बीच का लोक अभय हो :- वेद के इस मन्त्र के प्रथम भाग में उपदेश किया गया है कि हे प्राणी ! तूं बीच के लोक में अभय हो | यह बीच का लोक कौन सा हुआ ? यहाँ बीच के लोक से अभिप्राय: आकाश से होता है | आकाश विभिन्न पिंडों के बीच का स्थान होता है | अत: मन्त्र कहता है कि प्राणी के लिए आकाश मार्ग से सुरक्षित होना भी आवश्यक है | आकाश मार्ग में दो प्रकार के शत्रु आक्रमण करने वाले होते हैं |
प्रथम तो वह शत्रु जो वायुयान सरीखे यंत्रों का प्रयोग करते हुए आकाश मार्ग से आक्रमण करते हैं | इन से रक्षा के लिए हमें अनेक यंत्रों का निर्माण कर अपनी रक्षा और उनका विनाश करना होता है |
आकाश मार्ग से दूसरा शत्रु अनेक बार अत्यधिक वर्षा, आंधी ,तूफ़ान आदि होते हैं | इनसे रक्षा के लिए तो प्रभु की शरण ही चाहिए | यदि हम नित्य हवन अथवा अग्निहोत्र करते हैं, तो प्रकृति का संतुलन ठीक से बना रहता है , वायुमंडल शुद्ध रहता है | इस कारण यह महामारियां नहीं आ पाती |
२ . पृथिवीलोक और द्युलोक अभय करें :- आकाश के पश्चात् पृथिवी और देवलोक की चर्चा आती है | पृथिवी पर भी हमारे अनेक शत्रु विद्यमान रहते हैं | यह भी दो प्रकार के होते हैं | प्रथम को हम मनुष्य के रूप में जानते हैं | कुछ लोग हमारे धन दौलत और हमारे सुखों को देख कर कुपित होते हैं , कुछ विस्तारवादी राजा लोग अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार करने के लिए और कुछ इस प्रकार के भी हमारे शत्रु होते हैं , जो हमारे किसी व्यक्तिगत विषय को लेकर हमारे शत्रु बन जाते हैं और निरंतर लड़ाई - झगडा तथा मरने मारने का प्रयास करते रहते हैं | जो लोग हमारे सुखी जीवन से दु:खी हैं , उन्हें हम मुर्ख कह सकते हैं | उन्हें दृष्टिविगत करना ही उत्तम है | जो बात - बात पर झगड़ने का प्रयास करते हैं , उनसे दूरी बनाकर रखना ही उत्तम है और जो राजनीतिक कारण से आक्रमण करने वाले होते हैं , उन्हें समझाने का प्रयास करें यदि नहीं मानें तो अपने देश की सेना को आज्ञा देकर उनका नाश करें |
दूसरी प्रकार के शत्रुओं को हम प्राकृतिक आपदाओं के रूप में जानते हैं | इन्हें हम दैविक शत्रु भी कह सकते हैं | जब हम पाप मार्ग पर चलते हैं और प्रकृति के संसाधनों को नष्ट करने लगते हैं तो इन आपदाओं का आना निश्चित हो जाता है | परमपिता ने हमें प्रकृति के संसाधन हमारे उपभोग के लिए दिए हैं किन्तु हम हैं कि इन्हें आवश्यकता से कहीं अधिक प्राप्त करने का प्रयास करते हैं | हमारे इस प्रयास से प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाता है | परिणाम यह होता है , कभी हमें भूकम्पों का सामना करना पड़ता है , कभी भूमि की उपजाऊ पण के नाश का सामना करना पड़ता है तो कभी ज्वालामुखियों का | इससे हमारी भूमि हमें उतना नहीं दे पाती जितना हमें चाहिए होता है | इससे बचने के लिए हमें मितव्ययी रहते हुए वह सब उपचार करने चाहियें जो बीच के लोक को अभी करने के लिए बताये हैं | इससे हमारा पृथिवी लोक और द्युलोक दोनों अभय होगे |
३ . ऊपर - -नीचे सब और से अभय हों :- ऊपर अर्थात् आकाशलोक के लिए पहले बता ही दिया गया है | अब हम यहाँ नीचे अर्थात् पाताललोक की चर्चा करते हैं | भूमि के गर्भ में समाये उस भाग को हम पाताललोक कह सकते हैं , जो हम बिना पुरुषार्थ किये अपनी आँखों से नहीं देख सकते | इन में सोना, चांदी, पीतल तांबा आदि खनिज पदार्थों की हम चर्चा कर सकते हैं | परमपिता परमात्मा ने हमारी सुख सुविधाओं को बढाने के लिए धरती के गर्भ में अनेक प्रकार के खनिज पदार्थ छुपा कर रखे हैं | इन में से हम उतना ही निकालें , जितने की हमें आवश्यकता हो | अधिक निकालने से हमारी पृथिवी खोखली हो जाती है , जिस कारण हम अनेक विपदाओं में फंस जाते हैं | दूसरे कुछ शत्रु इस प्रकार के भी होते हैं जो भूमि के अन्दर से ही मार्ग बनाकर हमारे घरों में घुस कर आक्रमण कर देते हैं | इन शत्रुओं से भी हमें सावधान रहते हुए अपनी रक्षा करनी है |
इस प्रकार मन्त्र ने सब मार्गों से हमें सजग किया है और सब प्रकार के शत्रुओं से रक्षित होने का उपदेश दिया है |
0 टिप्पणियाँ