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सब कथाओं की कथा - राजेश बैरागी

फ्यूचर लाइन टाईम्स 



मोहित खरवार 


नोएडा  :  दूरदर्शन पर रामायण व महाभारत धारावाहिकों का पुनः प्रसारण हो रहा है।तीस वर्ष पहले जब इनका प्रथम प्रसारण हो रहा था तब प्रत्येक रविवार एक घंटे के लिए स्वयंमेव लॉकडाउन हो जाता था। इस बार लॉकडाउन को सफल बनाने के लिए इन्हें प्रसारित किया जा रहा है। दूरदर्शन एक बार फिर लोकप्रिय हो चला है।लोग नियमित रूप से इनका रसास्वादन कर रहे हैं।लोग इतनी रुचि से इन्हें क्यों देखते हैं? क्या लोग इतिहास से सबक लेते हैं? यदि ऐसा होता तो इतिहास बार बार क्यों दोहराया जाता। रामायण की कथा उपदेशात्मकता होने के साथ अधिक धार्मिक है।राम हिंदू धर्म के आराध्य हैं।उनका मर्यादा पुरुषोत्तम का चरित्र सभी ऊंच-नीच से परे है। परंतु महाभारत तो राजनीति, सत्ता लोलुपता, षड्यंत्र और राजपरिवार की रक्त पिपासु नीति का महागान है। वहां कृष्ण पूज्य हैं परंतु महाभारत की मूलकथा के कारण नहीं। यदि फिल्म संसार के चितेरे बी आर चोपड़ा ने इतनी सुंदरता से महाभारत प्रस्तुत न किया होता तो महाभारत से आमजन का परिचय सामान्य ही रहता। तो महाभारत की सफलता उसके सुंदर चित्रण और प्रस्तुति में है। निस्संदेह यह एक बहुआयामी कथा है जिसमें सीखने को बहुत कुछ है। फिर वही प्रश्न कि क्या हम कुछ सीखते हैं? यही वह प्रश्न है जिसके समक्ष महाभारत जैसा कथा सागर भी बौना सिद्ध होता है। अपने निहित स्वार्थों की भूल-भुलैया से न रामायण और न महाभारत हमें बाहर निकाल पाते हैं। इसी कारण इन कथाओं और इन पर बने धारावाहिक हमारा हर बार मात्र मनोरंजन करते हैं।


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