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प्रभु भक्ति के लिए योगाभ्यास : डा.अशोक आर्य

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


परमपिता परमात्मा के निकट बैठकर उसकी स्तुति पूर्वक प्रार्थना करने के लिए दूसरा मन्त्र कहता है कि जो परमपिता परमात्मा अपने प्रकाश से सब को प्रकाशित करता है , उस प्रभु को पाने का एक मात्र उपाय योगाभ्यास है | योगी लोग ही उसे पा सकते हैं | इसलिए हमें चाहिये कि हम प्रतिदिन नियम पूर्वक योगाभ्यास करें | इस निमित्त दिया गया यजुर्वेद और अथर्ववेद का मन्त्र इस प्रकार है :- 
             हिरण्यगर्भ: समवर्त्तागे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत् | स दाधार    
             पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम || यजु.अथर्व. 13 मं. ४ ||
      स्वामी जी इस मन्त्र का अर्थ इस प्रकार करते हैं :- जो स्वप्रकाशस्वरूप और जिसने प्रकाश करने हारे सूर्य – चंद्रादि पदार्थ उत्पन्न किये हैं , जो उत्पन्न हुए सम्पूर्ण जगत् का प्रसिद्ध स्वामी एक ही चेतन स्वरूप था , जो सब जगत् के उत्पन्न होने से पूर्व वर्तमान था, वह इस भूमि और सूर्यादि को धारण कर रहा है , हम लोग उस सुखस्वरूप शुद्ध परमात्मा के लिए ग्रहण करने योग्य योगाभ्यास और अति प्रेम से विशेष भक्ति किया करें |  
१ . स्वप्रकाशस्वरूप परमपिता परमात्मा अन्य ग्रहों तथा जीवों कि भाँति किसी और से प्रकाश अथवा ज्ञान नहीं लेता अपितु अपने स्वयं के ही प्रकाश से तथा अपने स्वयं के ही ज्ञान से प्रकाशित होता है | इस कारण वह परमात्मा स्वप्रकाशस्वरूप कहलाता है | 
२ . प्रकाश करने हारे सूर्य – चंद्रादि का उत्पादक परमपिता परमात्मा केवल स्वप्रकशस्वरूप ही नहीं है अपितु उस पिता ने कुछ पदार्थ इस प्रकार के भी उत्पन्न किये हैं , जो सब और प्रकाश बाँटते हैं किन्तु इन का अपना स्वयं का कोई प्रकाश नहीं हैं | यह सब उस परमपिता से ही प्रकाश लेकर स्वयं को प्रकास्षित करते हैं | इन में प्रमुख रूप से सूर्य और चंद्रमा आदि हैं | परमपिता ने न केवल इनको प्रकाश ही दिया है अपितु उसने इन्हें धारण भी कर रखा है |
३ .  एक ही चेतन स्वरूप
परमपिता परमात्मा ने ही इस चलायमान जगत् को पैदा किया है | इस प्रकार यह पूरा संसार उस पिता की ही संतान है | इन सब का उत्पादक होंने के कारण इस पूरे संसार का मात्र एक ही स्वामी है और उसका नाम है परमात्मा |


4. इन सबका एकमात्र स्वामी परमपिता परमात्मा ही है और इस प्रभु में पूर्ण और अपनी स्वयं कि चेतना थी | इस कारण वह प्रभु चेतनस्वरूप भी था और है |
५ .  जगत् के उत्पन्न होने से पूर्व वर्तमान था
किसी भी वस्तु का कोई भी निर्माण करने वाला जो होता है , उसके लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह उस वास्तु के निर्माण से पूर्व विद्यमान हो | इस सिद्धांत को देखें तो हम निश्चय ही कहेंगे कि इस जगत् के समग्र पदार्थों और जीवों को देने वाला वह परमपिता भी निश्चय ही इन के निर्माण से पूर्व विद्यमान था |
६ .   भूमि और सूर्यादि को धारण
      परमपिता परमात्मा ने हमारे लिए भूमि , चाँद सितारे और सूर्यादि का निर्माण किया है | अन्यथा हम किस के सहारे पर रहते | प्रश्न यह भी है कि जिन भूमि और सूर्यादी को प्रभु ने  बनाया है , वह आकाश में टिके किसके आधार पर हैं ? इस का उत्तर इस मन्त्र के माध्यम से ही परमपिता परमात्मा स्वयं देते हैं कि यह सब उस प्रभु ने ही धारण कर रखे हैं , उसके आधार पर ही आकाश में टिके हुए हैं |
७ .   सुखस्वरूप शुद्ध परमात्मा
      जिस प्रभु के आधार पर यह सब पिंड टिके हैं , वह प्रभु सब को सदा ही सुख देने वाला है | हम जानते हैं कि कर्म ही जीव का धर्म है, जिन्हें वह स्वेच्छा से अच्छे या बुरे रूप में करता है | परमपिता किये गए कर्मों का तदनुरूप फल देता है | सुख स्वरूप होने के कारण हमारे किये गये पापाचार का बुरा फल देकर थोड़ी देर के लिए हमें रुलाता है और बुरे कर्म का फल मिलने से वह कर्म समाप्त हो जाने से शेष रहे अच्छे कर्मों के कारण हम सुखी होते हैं | इस कारण वह परमात्मा सुखस्वरूप है | परमात्मा के सब कार्य सत्याचरण पर ही आधारित हैं | उसके सामने न तो हमारी कोई चालाकी ही काम करती है और न ही उसे हम किसी प्रकार की रिश्वत ही दे सकते हैं | इस कारण वह शुद्धस्वरूप भी है |
८ .   योगाभ्यास और अति प्रेम से भक्ति करें
      सुखस्वरूप ताथा शुद्ध परमात्मा को पाने की सब को आवश्यकता अनुभव होती है | आज हमारे माता पिता भी कहते हैं कि उनका बेटा स्कूल में अपनी कक्षा के किसी इस प्रकार के विद्यार्थी का साथ करे जो सब प्रकार से सहयोग करने वाला परिश्रमी और मेधावी हो ताकि उनका बालक भी उस प्रकार ही कक्षा में सब से आगे निकल सके | यदि हम अपंने बालक के लिए इस प्रकार की इच्छा करते हैं तो वह प्रभु तो पूरे संसार का पिता है, वह तो चाहेगा ही कि सबको सुख देने वाला होने के कारण सब प्राणी उसका साथ करें | उस प्रभु का साथ पाने के लिए मन्त्र के अंतिम भाग में परमपिता परमात्मा स्वयं ही आदेश कर रहे हैं कि हे प्राणी ! यदि मुझे पाने की इच्छा है , मेरा साथ बनाने की इच्छा है तो तुम्हारे लिए यह आवश्यक है कि वेद में बताई गई विधि से मेरी वेशेष प्रकार से भक्ति करें और प्रतिदिन नियमित रूप से योगाभ्यास करें | योग साधना के बिना कोई मुझे नहीं पा सकता | 


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