फ्यूचर लाइन टाईम्स
नोएडा : रात्रि में ही यह कार्यक्रम तय हुआ और हम चारों मित्र कार में सवार होकर निकल गये।10-12 दिनों के घरेलू कारावास से बाहर निकलना किसी आजादी से कम नहीं था। रास्ते में जगह-जगह पुलिस द्वारा स्थापित अस्थाई अवरोधों ने व्यवधान उत्पन्न किया परंतु जिनका लक्ष्य निश्चित हो उन्हें कौन रोक सकता है। अतः कहीं प्रैस मान्यता पत्र दिखाकर, कहीं किसी पुलिस प्रशासन के अधिकारी से संबंध बताकर और कहीं मजबूरी का रोना रोकर हम आगे बढ़ते रहे। देहरादून तक गाड़ी मैंने चलाई। ऊपर मसूरी के पहाड़ की कठिन डगर पर गाड़ी चलाना मुझे हमेशा असंभव प्रतीत होता है। इसलिए गाड़ी शेष मित्रों में से एक ने संभाल ली। जैसे तैसे ऊपर पहुंचे तो पहाड़ों की रानी जैसे गुमसुम सी ठिठकी हुई बैठी थी।वही घंटाघर, वही मालरोड, वही कंपनी बाग किंतु कहीं जीवन के जीवंत होने का संकेत नहीं। सड़क किनारे बैठे लोग जिनमें ज्यादातर होटल, ढाबों में काम करने वाले बेयरे आदि थे, हमें देखकर अचानक उनकी आंखों में चमक उभरी और तुरंत बुझ भी गयी। कोरोनावायरस ने पहाड़ और पहाड़ों की रानी की रौनक भी लील ली थी। पर्यटकों से गुलजार रहने वाला माल रोड सूना था।हम केम्पटी फॉल तक गये। वहां झरना हमेशा की तरह गिर रहा था परंतु आंसुओं के सैलाब जैसा। देहरादून में हमारे पत्रकार मित्र के के पचौरी जी को हमने घर से चलते समय फोन कर कुछ व्यवस्था कराने को कहा तो हमारी मूर्खता पर खूब हंसे थे। अब हम अपनी मूर्खता पर रुआंसे हो रहे थे। सुबह जब पत्नी को मैंने यह सारा वाकया सुनाया तो वो मोदी जी पर गुस्सा हो गईं।बिफर कर बोलीं,-ये मोदी जी सपनों को लॉकडाउन क्यों नहीं करते हैं।
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