फ्यूचर लाइन टाईम्स
मोहित खरवार
नोएडा : कल एक मित्र जरूरी सामान लेने बाजार की ओर गए। वहां अनेक लोग ऐसे घूम रहे थे जो सामान लेने आने वालों से आटा दाल जैसी जीवनोपयोगी चीजें दिलाने की प्रार्थना कर रहे थे। मित्र ऐसे एक आदमी को दुकान पर ले गए और दुकानदार से उसे आटे का एक पैकेट देने को कहा। दुकानदार ने कहा,-भाईसाहब सुबह से आप छठे व्यक्ति हैं जो इस आदमी को आटा दिलवा रहे हैं। सामाजिक संस्थाओं, सहृदय लोगों और सरकारी महकमों द्वारा खान-पान का सामान बांटने का काम खूब चल रहा है। कहीं किसी क्षेत्र में चलो खाना लेने वालों की कतारें खत्म नहीं होतीं। क्या सभी लोग वास्तविक जरूरतमंद हैं? शायद पिछले दो सप्ताह में असीमित सूखा और तैयार खाना बांटा जा चुका है। भयभीत और चतुर लोग खाने की सामग्री का भंडार कर रहे हैं। अनेक स्थानों पर लोगों की बदनीयती उजागर भी हुई है। तो भी क्या जरूरतमंदों को जीवनरक्षक खाद्य सामग्री का वितरण स्थगित कर दिया जाना चाहिए? यह एक सामाजिक विकार है जो हमेशा मौजूद रहता है और विशेष परिस्थितियों में भयावह रूप धारण कर लेता है। इससे वास्तविक जरूरतमंदो की मुसीबत बढ़ती है, मददगारों का उत्साह क्षीण हो जाता है। परंतु किसी जीवंत समाज की पहचान उसके विकारों से नहीं उसकी विशेषताओं से होती है। लिहाजा भयभीत और चतुर लोगों के कृत्यों को नजरंदाज कर सावधानी और सजगता से इस बुरे समय तथा हमेशा वास्तविक जरूरतमंदो की खोज जारी रहनी चाहिए। यह सक्षम लोगों की जिम्मेदारी भी है और मानवीय जरूरत भी है।
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