फ्यूचर लाइन टाईम्स
7. शंका - क्या नारी को यज्ञ में ब्रह्मा बनने का अधिकार हैं?
समाधान- यज्ञ में ब्रह्मा का पद सबसे ऊँचा होता है। ऐतरेय ब्राह्मण 5/33 के अनुसार ज्ञान, कर्म और उपासना तीनों विद्याओं के प्रतिपादक वेदों के पूर्ण ज्ञान से ही मनुष्य ब्रह्मा बन सकता हैं। शतपथ ब्राह्मण 11/5/7 में इसी तथ्य का समर्थन किया गया हैं। गोपथ ब्राह्मण 1/3 के अनुसार जो सबसे अधिक परमेश्वर और
वेदों का ज्ञाता हो उसे ब्रह्मा बनाना चाहिए।
ऋग्वेद 8/33 में नारी को कहा गया है कि "स्त्री हि ब्रह्मा बभूविथ" अर्थात इस प्रकार से उचित सभ्यता के नियमों का पालन करती हुई नारी निश्चित रूप से ब्रह्मा के पद को पाने योग्य बन सकती है।
जब वेदों में स्पष्ट रूप से नारी जाति को यज्ञ में ब्रह्मा बनने का आदेश हैं तो अन्य ग्रंथों से इसके विरोध में अगर कोई प्रमाण प्रस्तुत किया जाता है तो वह अमान्य है
क्यूंकि मनुस्मृति 2/13में लिखा है कि धर्म को जानने की इच्छा रखने वालों के लिए वेद ही परम प्रमाण है।
8. शंका- क्या वेदों में दहेज देने की प्रथा का विधान हैं जिसके कारण नारी जाति पर अनेक अत्याचार हो रहे है?
समाधान- वेदों में पुत्री को दहेज से अलंकृत करने का सन्देश दिया गया है परन्तु यहाँ पर दहेज का वास्तिक अर्थ उससे भिन्न है जैसा प्राय: प्रचलित है।
अथर्ववेद 14/1/8 के मंत्र में पिता द्वारा कन्या को स्तुति वृति वाला बना देना ही पुत्री के लिए सच्चा दहेज़ है। यहाँ पर स्तुति वृति का भाव है पुत्री सदा दूसरों के गुणों की प्रशंसा करने वाली हो, किसी के भी अवगुणों की और ध्यान नहीं देने वाली हो अर्थात परनिंदा नहीं करने वाली हो एवं उसके गहने उसकी भद्रता , उसका शिष्टाचार और उसकी प्रभु के गुणगान करने की वृति हो।
यहाँ पर पुत्री को गुणों से सुशोभित करना एक पिता के लिए सच्चा दहेज देने के समान हैं। कालांतर में कुछ लोभी लोगो ने दहेज का अर्थ धन समझ लिया जिसके कारण उनका लालच बढ़ता गया एवं उसका परिणाम नारी जाति पर अत्याचार के रूप में आया हैं जो निश्चित रूप से सभ्य समाज के माथे पर कलंक के समान हैं।
9. शंका- क्या वेदों में केवल पुत्र की कामना करी गई हैं?
समाधान- आज समाज में कन्या भ्रूण हत्या का महापाप प्रचलित हो गया है। जिसका मुख्य कारण नारी जाति का समाज में उचित सम्मान न होना, धन आदि के रूप में दहेज जैसी कुरीतियों का होना ,समाज में बलात्कार जैसी घटनाओं का बढ़ना ,चरित्र दोष आदि हैं जिससे नारी जाति की रक्षा कर पाना कठिन हो गया हैं। ऐसे में समाज में पुत्र की कामना अधिक बलवती हो उठी हैं एवं पुत्री को बोझ समझा जाने लगा हैं। कुछ लोगो ने यह कुतर्क देना प्रारम्भ कर दिया है कि वेद नारी को हीन दृष्टी से देखते है और वेदों में सर्वत्र पुत्र ही मांगे गई है। सत्य यह है कि वेदों में पत्नी को उषा के सामान प्रकाशवती [ऋग्वेद 4/14/3, ऋग्वेद 7/78/3, ऋग्वेद 1/124/3, ऋग्वेद 1/48/8], वीरांगना [अथर्ववेद14/1/47, यजुर्वेद 5/10, यजुर्वेद 10/26, यजुर्वेद 13/16, यजुर्वेद 13/18], वीरप्रसवा [ऋग्वेद 10/47/2-5, ऋग्वेद 4/2/5, ऋग्वेद 7/56/24, ऋग्वेद 9/98/1], विद्या अलंकृता [यजुर्वेद 20/84, यजुर्वेद 20/85, ऋग्वेद 1/164/49, ऋग्वेद 6/49/7], स्नेहमयी माँ [ऋग्वेद 10/17/10, ऋग्वेद 6/61/7, यजुर्वेद 6/17, यजुर्वेद 6/31, अथर्ववेद 3/13/7], पतिंवरा (पति का वरण करने वाली) [ऋग्वेद 5/32/11, यजुर्वेद 37/10, यजुर्वेद 37/19, यजुर्वेद 8/7, अथर्ववेद 2/36/5] , अन्नपूर्णा [ अथर्ववेद 7/60/5, अथर्ववेद 3/24/4, अथर्ववेद 3/12/2, यजुर्वेद 8/42, ऋग्वेद 1/92/8], सदगृहणी और सम्राज्ञी [अथर्ववेद14/1/17, अथर्ववेद 14/1/42, यजुर्वेद 11/63, यजुर्वेद 11/64, यजुर्वेद 15/63] आदि से संबोधित किया गया हैं जो निश्चित रूप से नारी जाति को उचित सम्मान प्रदान करते हैं।
उदहारण के लिए वेदों में नारी जाति की यशगाथा के लिए कुछ वेद मंत्र प्रस्तुत कर रहे हैं।
1. मेरे पुत्र शत्रु हन्ता हों और पुत्री भी तेजस्वनी हो।[ऋग्वेद 10/159/3]
2. यज्ञ करने वाले पति-पत्नी और कुमारियों वाले होते है।[ऋग्वेद 8/31/8]
3. प्रति प्रहर हमारी रक्षा करने वाला पूषा परमेश्वर हमें कन्यायों का भागी बनायें अर्थात कन्या प्रदान करे।[ऋग्वेद 9/67/10]
4. हमारे राष्ट्र में विजयशील सभ्य वीर युवक पैदा हो, वहां साथ ही बुद्धिमती नारियों के उत्पन्न होने की भी प्रार्थना हैं।[यजुर्वेद 22/22 ]
5. जैसा यश कन्या में होता हैं वैसा यश मुझे प्राप्त हो ।[अथर्ववेद 10/3/20]
इस प्रकार से नारी जाति की वेदों में महिमामंडन हैं नाकि उन्हें अवांछनीय मान कर केवल पुत्रों की कामना की गई हैं।
10. शंका- क्या वेदों में बहु-विवाह आदि का विधान हैं?
समाधान- वेदों के विषय में एक भ्रम यह भी फैलाया गया हैं की वेदों में बहुविवाह की अनुमति दी गयी है [5 ]।
वेदों में स्पष्ट रूप से एक ही पत्नी होने का विधान बताया गया हैं।
ऋग्वेद 10/85 को विवाह सूक्त के नाम से जाना चाहता हैं। इस सूक्त के मंत्र ४२ में कहा गया हैं तुम दोनों इस संसार व गृहस्थ आश्रम में सुख पूर्वक निवास करो। तुम्हारा कभी परस्पर वियोग न हो और सदा प्रसन्नतापूर्वक अपने घर में रहो। यहाँ पर हर मंत्र में "तुम दोनों" अर्थात पति और पत्नी आया हैं। अगर बहुपत्नी का सन्देश वेदों में होता तो "तुम सब" आता।
ऋग्वेद 10/85/47 में हम दोनों (वर-वधु) सब विद्वानों के सम्मुख घोषणा करते हैं की हम दोनों के ह्रदय जल के समान शांत और परस्पर मिले हुए रहेंगे।
अथर्ववेद 7/35/4 में पति पत्नी के मुख से कहलाया गया हैं की तुम मुझे अपने ह्रदय में बैठा लो , हम दोनों का मन एक ही हो जाये।
अथर्ववेद 7/38/4 पत्नी कहती हैं तुम केवल मेरे बनकर रहो और अन्य स्त्रियों का कभी कीर्तन व व्यर्थ प्रशंसा आदि भी न करो।
ऋग्वेद 10/101/11 में बहु विवाह की निंदा करते हुए वेद कहते हैं जिस प्रकार रथ का घोड़ा दोनों धुराओं के मध्य में दबा हुआ चलता हैं वैसे ही एक समय में दो स्त्रियाँ करनेवाला पति दबा हुआ होता हैं अर्थात परतंत्र हो जाता हैं.इसलिए एक समय दो व अधिक पत्नियाँ करना उचित नहीं हैं।
इस प्रकार वेदों में बहुविवाह के विरुद्ध स्पष्ट उपदेश हैं। वेदों की अलंकारिक भाषा को समझने में गलती करने से इस प्रकार की भ्रान्ति होती हैं।
11. शंका- क्या वेद बाल विवाह का समर्थन करते हैं?
समाधान- हमारे देश पर विशेषकर मुस्लिम आक्रमण के पश्चात बाल विवाह की कुरीति को समाज ने अपना लिया जिससे न केवल ब्रहमचर्य आश्रम लुप्त हो गया बल्कि शरीर की सही ढंग से विकास न होने के कारण एवं छोटी उम्र में माता पिता बन जाने से संतान भी कमजोर पैदा होती गयी जिससे हिन्दू समाज दुर्बल से दुर्बल होता गया।
अथर्ववेद के ब्रहमचर्य सूक्त के 11/5/18 मंत्र में कहा गया हैं की ब्रहमचर्य (सादगी, संयम और तपस्या) का जीवन बिता कर कन्या युवा पति को प्राप्त करती हैं। इस मंत्र में नारी को युवा पति से ही विवाह करने का प्रावधान बताया गया हैं जिससे बाल विवाह करने की मनाही स्पष्ट सिद्ध होती हैं।
ऋग्वेद 10/183 सूक्त में वर वधु मिलकर संतान उत्पन्न करने की बात कह रहे हैं। वधु वर से मिलकर कह रही हैं की तो पुत्र काम हैं अर्थात तू पुत्र चाहता हैं वर वधु से कहता हैं की तू पुत्र कामा हैं अर्थात तू पुत्र चाहती हैं अत: हम दोनों मिलकर उत्तम संतान उत्पन्न करे। पुत्र अर्थात संतान उत्पन्न करने की कामना युवा पुरुष और युवती नारी में ही उत्पन्न हो सकती हैं। छोटे छोटे बालक और बालिकाओं में नहीं हो सकती हैं।
इसी प्रकार से अथर्ववेद 2/30/5 में भी परस्पर युवक और युवती एक दुसरे को प्राप्त करके कह रहे हैं की मैं पतिकामा अर्थात पति की कामना वाली और यह तू जनीकाम अर्थात पत्नी की कामना वाला दोनों मिल गए हैं। युवा अवस्था में ही पति-पत्नी की कामना की इच्छा हो सकती हैं छोटे छोटे बालक और बालिकाओं में यह इच्छा नहीं होती हैं। इन प्रमाणों से यही सिद्ध होता हैं की वेद बालविवाह का समर्थन नहीं करते।
12. शंका- वेदों में नारी की महिमा का संक्षेप में वर्णन बताये?
समाधान- संसार की किसी भी धर्म पुस्तक में नारी जाति की महिमा [6] का इतना सुंदर गुण गान नहीं मिलता जितना वेदों में मिलता हैं। कुछ उद्हारण देकर हम अपने कथन को सिद्ध करेगे।
1. उषा के समान प्रकाशवती - हे राष्ट्र की पूजा योग्य नारी! तुम परिवार और राष्ट्र में सत्यम, शिवम्, सुंदरम की अरुण कान्तियों को छिटकती हुई आओ , अपने विस्मयकारी सद्गुणगणों के द्वारा अविद्या ग्रस्त जनों को प्रबोध प्रदान करो। जन-जन को सुख देने के लिए अपने जगमग करते हुए रथ पर बैठ कर आओ।[ऋग्वेद 4/14/3]
2. वीरांगना- हे नारी! तू स्वयं को पहचान ।तू शेरनी हैं, तू शत्रु रूप मृगों का मर्दन करनेवाली हैं, देवजनों के हितार्थ अपने अन्दर सामर्थ्य उत्पन्न कर। हे नारी ! तू अविद्या आदि दोषों पर शेरनी की तरह टूटने वाली हैं, तू दिव्य गुणों के प्रचारार्थ स्वयं को शुद्ध कर! हे नारी ! तू दुष्कर्म एवं दुर्व्यसनों को शेरनी के समान विश्वंस्त करनेवाली हैं, धार्मिक जनों के हितार्थ स्वयं को दिव्य गुणों से अलंकृत कर।[यजुर्वेद 5/10]
3. वीर प्रसवा- राष्ट्र को नारी कैसी संतान दे- हमारे राष्ट्र को ऐसी अद्भुत एवं वर्षक संतान प्राप्त हो, जो उत्कृष्ट कोटि के हथियारों को चलाने में कुशल हो, उत्तम प्रकार से अपनी तथा दूसरों की रक्षा करने में प्रवीण हो, सम्यक नेतृत्व करने वाली हो, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष रूप चार पुरुषार्थ- समुद्रों का अवगाहन करनेवाली हो, विविध संपदाओं की धारक हो, अतिशय क्रियाशील हो, प्रशंशनीय हो, बहुतों से वरणीय हो, आपदाओं की निवारक हो।[ ऋग्वेद 10/47/3]
4. विद्या अलंकृता-विदुषी नारी अपने विद्या-बलों से हमारे जीवनों को पवित्र करती रहे। वह कर्मनिष्ठ बनकर अपने कर्मों से हमारे व्यवहारों को पवित्र करती रहे। अपने श्रेष्ठ ज्ञान एवं कर्मों के द्वारा संतानों एवं शिष्यों में सद्गुणों और सत्कर्मों को बसाने वाली वह देवी गृह आश्रम-यज्ञ एवं ज्ञान-यज्ञ को सुचारू रूप से संचालित करती रहे। [यजुर्वेद 20/84]
5. स्नेहमयी माँ- हे प्रेमरसमयी माँ! तुम हमारे लिए मंगल कारिणी बनो, तुम हमारे लिए शांति बरसाने वाली बनो, तुम हमारे लिए उत्कृष्ट सुख देने वाली बनो। हम तुम्हारी कृपा-दृष्टि से कभी वंचित न हो।[अथर्वेद 7/68/2]
6. अन्नपूर्णा- इस गृह आश्रम में पुष्टि प्राप्त हो, इस गृह आश्रम में रस प्राप्त हो. इस गिरः आश्रम में हे देवी! तू दूध-घी आदि सहस्त्रों पोषक पदार्थों का दान कर। हे यम- नियमों का पालन करने वाली गृहणी! जिन गाय आदि पशु से पोषक पदार्थ प्राप्त होते हैं उनका तू पोषण कर।[अथर्ववेद 3/28/4]
अंत में मनुस्मृति के प्रचलित श्लोक से इस विषय को विराम देना चाहेंगे।संसार में नारी जाति को सम्मान देने के लिए इससे सुन्दर शब्द शायद हो कहीं मिलेंगे।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: । यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।।
जिस कुल में नारियो कि पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण , दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियो कि पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं।
[1] Census Report of 1901 on Female literacy rate in united provinces was 15/10,000 for common population while for members of Aryasamaj it was 674/10,000.
[2] पूना प्रवचन उपदेश मंजरी 12 वां प्रवचन
[3] आधुनिक भारतीय विद्वानों में से स्वामी दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश में, पंडित सत्यव्रत जी सामश्रमी ने ऐतरेयालोचन में, श्री रमेशचन्द्र दत्त ने History of civilization of India में, श्री भगवत शरण उपाध्याय Women in Rigveda में, डॉ ऐतलेकर The education in ancient India में, पंडित शिवदत्त शर्मा महामहोपाध्याय आर्य विद्या सुधाकर में, श्री काणे महोदय History of Dharam Shastras में, श्री महादेव जी शास्त्री The Vedic Law of Marriage में मानते हैं की प्राचीन काल में कन्याओं का उपनयन होता था और नारी न केवल वेदाध्ययन करती थी अपितु ऋषिकाएँ भी बनती थी।
[4] डॉ मिज़ Dharma and Society में लिखते हैं In Rigvedic India there were women Rishis, the wives participated in the ceremonies with their husbands. They were highly honored and respected and could even perform the function of a priest at a sacrifice.
[5] Vedic Age page 390
[6] वैदिक नारी रचियता रामनाथ वेदालंकार
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