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वेद का लक्ष्य मनुष्य को पूर्ण मनुष्य बनाना है ।

फ्यूचर लाइन टाईम्स


जो लोग कहा करते हैं कि वेद केवल यज्ञ‍-याग व पारलौकिक विषयों का ही उपदेश करता है, वे इस मन्त्र का मनन करें | वेद स्पष्ट ही यहां लोकव्यवहार का उपदेश दे रहा है | वास्तविक बात यह है कि वेद मनुष्य जीवन के उपयोगी सभी तत्वों का उपदेश करता है, चाहे वे लौकिक हों या पारलौकिक | वेद का लक्ष्य मनुष्य को पूर्ण मनुष्य बनाना है |
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ओउम्!
य उग्र इव शर्य‌हा तिग्म श्रङगो न वंसगः |
अग्ने पुरो रुरोजिथ ||
- ऋग्वेद 6/16/39
शब्दार्थ-
हे अग्ने अग्ने , अग्रणी
यः जो तू
उग्र+ इव तेजेस्वी के समान
शर्य्यहा तीरों से बींधने योग्यों का मारनेवाला होकर
तिग्मऋङगः+ न तीक्ष्ण किरण वाले सूर्य की भाँति
वंसगः संभजनीय को प्राप्त होनेवाला होकर
पुरः शत्रु के नगरों को
रुरोजिथ तोड़ता है, अथवा
पुरः पहले
रुरोजिथ आक्रमण करता है


व्याख्या-
यह मन्त्र व्यवहारनीति का एक तत्व बताता है | जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए कभी कोमल बनना पड़ता है और कभी कठोरता की ठोकर खानी और मारनी पड़ती है | जो मनुष्य यथा समय इनका व्यवहार करना जानता है और कर सकता है, वह अवष्य सफलता प्राप्त करता है | वेद का आदेश है
- य उग्र इव शर्य‌हा -
जो तेजस्वी की भाँति हन्तव्य को मार देता है | तात्पर्य यह है कि जो शत्रु हथियार की मार में आया है, उसे छोड़ना नहीं चाहिए, उसे मार ही देना चाहिए | तेजस्वी मनुष्य इस प्रकार हाथ में आये को कभी नहीं छोड़ता | ऐसे ही आध्यात्मिक क्षेत्र में जब वृतियां दुर्बल हैं, तभी मार देनी चाहिएँ, प्रबल होकर उनका उखाड़ना कठिन होगा | प्रबल तेज वाला सूर्य्य ही वृत्र=पानी रोक रख‌ने वाले मेघ को छिन्न भिन्न करके पृथिवी आदि पर पूर्ण प्रकाश कर सकता है | इसी भाँति जो नेता शत्रु के पुरों को, दुर्गों को तोड़फोड़ देता है, वह विजय पाता है |
पुरो रुरोजिय ‍-
में एक ध्वनि और भी है | पहले आक्रमण वाला लाभ में रहता है | आत्मरक्षा में लगना अतीव दुस्सह कार्य है, उसमे सफलता संधिग्ध रहती है, कितु यदि रक्षणस्थिति में आने से पूर्व शत्रु पर आक्रमण कर दिया जाए, तो शत्रु का उत्साह भंग आदि ोकर बहुधा वह पराजित हो जाता है | भाव यह है कि मनुष्य को सदा तेजस्वी रहना चाहिए, विघ्नों को पाते ही उन्हें मार देना चाहिए | साधन सभी तीक्ष्ण अर्थात कार्य्यसिद्धिस‌मर्थ रखने चाहिएँ, किन्तु साथ ही सभ्भजनीयों का संग भी निरन्तर करते रहना चाहिए, इस सब का उद्देश्य शत्रु को प्रबल न होने देना है |


 


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