फ्यूचर लाइन टाईम्स
हैरान होना मेरा स्वभाव बन गया है। मुझे फिर हैरानी हुई। गौतमबुद्धनगर के पुलिस आयुक्त आलोक सिंह ने थानेदारों को हर पीड़ित की प्राथमिकी दर्ज करने का हुक्म दिया है। उन्होंने बिना सिफारिश ऐसा करने का हुक्म भी दिया। मैं समझा नहीं तो इस बाबत छपे समाचारों को दोबारा पढ़ा। खुद से सवाल पूछा,-तो क्या अब तक कुछ पीड़ितों की रिपोर्ट ही लिखी जा रही थी? और क्या एफआईआर लिखाने के लिए भी सिफारिश की जरूरत होती है? आलोक सिंह वरिष्ठ आइपीएस हैं,मेरठ मंडल के महानिरीक्षक भी हैं। उन्हें इन खामियों का पता कब लगा। उन्होंने प्राथमिकी न लिखने वाले और सिफारिशों का इंतजार करने वाले थाना प्रभारियों के साथ क्या सलूक किया।हो सकता है कि उन्होंने 'बीती ताहि बिसार दे' के सिद्धांत पर चलने का निर्णय लिया हो।तो भी कोई बात नहीं।वह केवल इतना भरोसा दे दें कि कट ऑफ डेट 4/3/2020 के बाद संविधान के मौलिक अधिकारों के अधीन किसी पीड़ित को रिपोर्ट लिखाने के लिए उच्चाधिकारियों अथवा अदालत के पास नहीं जाना पड़ेगा। यदि ऐसा हुआ तो संबंधित थानेदार को नौकरी से चलता कर दिया जाएगा। कृष्ण की कसम कायम नहीं रही थी,यह तो पुलिस महकमा है।
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