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सूर्य के उदय और अस्त होने के साथ-साथ प्रतिदिन आयु भी घटती जा रही है।

फ्यूचर लाइन टाईम्स


आदित्यस्य गतागतैरहरह: संक्षीयते जीवनं,
व्यापारैर्बहुकार्यभारगुरुभि: कालोSपि न ज्ञायते।
दृष्ट्वा जन्मजराविपत्तिमरणं त्रासश्च नोत्पद्यते,
पीत्वा मोहमयीं प्रमादमदिरा मुन्मत्तभूतं जगत्।।
भर्तृहरिकृत वैराग्यशतक 


अर्थात् - सूर्य के उदय और अस्त होने के साथ-साथ प्रतिदिन आयु भी घटती जा रही है। और इसी प्रकार दिन, सप्ताह, पक्ष, मास, और वर्ष पर वर्ष बीतते जा रहे हैं। यह जीवन समाप्त होता जा रहा है। घटता जा रहा है।
 मनुष्य की आयु सामान्यतः सौ वर्ष की मानी गई है। इन सौ वर्षों में से नित्य दिन घटते जा रहे हैं। कम होते जा रहे हैं। किन्तु सांसारिक कार्यों में निमग्न मनुष्य को समय के व्यतीत होने का कोई भी ज्ञान नहीं हो रहा है। प्रत्येक मनुष्य अपने सांसारिक कार्यों में, गृहस्ती के कार्यों में, सन्तानोत्पत्ति एवं पालन-पोषण में, व्यापार के कार्यों में, धन कमाने के कार्यों में, लोकेषणा के कार्यों में, अथवा छल, कपट, चोरी, लूट आदि कार्यों में इतना व्यस्त है कि उसका इस ओर ध्यान ही नहीं हो पा रहा है।
 नित्य प्रति हम जन्म और मृत्यु को देख रहे हैं। बुढ़ापा और रोग को देख रहे हैं। किन्तु फिर भी इन भयंकर दुखों को देखकर कोई भय उत्पन्न नहीं हो रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह सारा संसार (प्राणी जगत) मोह और अज्ञान रूपी मदिरा को पीकर मतवाला हो रहा है। अर्थात सब कुछ देख सुनकर भी जीवन के लक्ष्य के प्रति सावधान नहीं है, और  पुरुषार्थ हीन बना हुआ है। अर्थात उसे अपने जीवन के लक्ष्य का पता ही नहीं है। यह मनुष्य जीवन किस लिए मिला हुआ है? रामधारी सिंह दिनकर लिखते हैं -  "यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो! समझो के जिसमें यह व्यर्थ ना हो"
 अर्थात यह मनुष्य जीवन एक बहुत बड़े लक्ष्य की प्राप्ति करने के लिए हमें मिला हुआ है। और यदि उस लक्ष्य को हम प्राप्त नहीं कर पाते हैं तो जीवन की निरर्थक ता है।
 उपनिषद का ऋषि इसी और हमारा मार्गदर्शन करता है - 
"इह चेदवेदीदथ सत्यमस्ति,
न चेदिहावेदीन्महती विनष्टि:।"
(केनोपनिषद् २/५)
 अर्थात-  इस वर्तमान जीवन में हमने अपने लक्ष्य को जान लिया अर्थात इस मनुष्य का शरीर रहते हुए ही यदि उस लक्ष्य को पहचान लिया तो इस मनुष्य जीवन की, इस शरीर की सार्थकता है। और यदि हमने उस लक्ष्य को ना जाना तो फिर महाविनाश है। बहुत बड़ी हानि है। क्योंकि बहुत पुण्य कर्मों के फलस्वरूप यह मनुष्य जीवन हमें प्राप्त होता है। और यदि हमने इसको यूं ही व्यर्थ गंवा दिया तो बहुत हानि होने वाली है। इसलिए हमें अपने जीवन के लक्ष्य के प्रति सजग व सावधान रहना चाहिए। और नित्य निरंतर अपने जीवन के लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए। सांसारिक एषणाओं को हम कम करते जाएं, और जितना जितना हम विवेक( यथार्थ ज्ञान) और वैराग्य ( सांसारिक वस्तुओं से मोह त्याग) को जागृत करते जाएंगे उतना उतना अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते चले जाएंगे। तभी इस जीवन का अभीष्ट लक्ष्य हम सबको प्राप्त हो सकता है।


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