फ्यूचर लाइन टाईम्स
वेद का ज्ञान प्राणी - मात्र के कल्याण के लिए सृष्टि के आरम्भ में परमपिता परमात्मा ने दिया था | परमपिता परमात्मा का ज्ञान सर्वोपरि होता है | इसमें सब प्रकार के आवश्यक ज्ञान समाविष्ट होते हैं | इसलिए इसमें राजा व राष्ट्रपति के गुणों का स्पष्ट संकेत किया गया है | जब इन नेताओं का चुनाव किया जाता है तो इन गुणों की कसौटी पर परख कर मतदान किया जावे तो निश्चय ही हम एक उत्तम व्यवस्थापक , जनसेवक का चुनाव कर पाने में सक्षम होते हैं , अन्यथा हम एक इस प्रकार का नेता चुन लेते हैं जो हमारी समस्याओं को दूर करने के स्थान पर बढाने का कारण होते हैं | इन दोनों प्रकार के नेताओं का चुनाव किस प्रकार किया जाना चाहिए इस सम्बन्ध में वेद में अनेक मन्त्रों के द्वारा निर्देश किया गया है | कुछ मन्त्रों में तो स्पष्ट निर्देश दिया है | इस प्रकार के मन्त्रों में यजुर्वेद के नवम अध्याय का चालीसवां मन्त्र प्रमुख रूप से सामने आता है , जिसके माध्यम से इस प्रकार से वेद ने उपदेश किया है :-
इमं देवाSअसपत्न ्ँसुवध्वं महते क्षत्रायं महते जयैष्ठ्याय महते
जानाराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय | इमममुष्य पुत्रममुष्ये पुत्रमस्ये
विशSएष वोSमी राजा सोमोSस्माकं ब्राह्मणाना१Sराजां || यजुर्वेद ९.४० ||
१ राजा वीर हो
इस मन्त्र के माध्यम से परमपिता परमात्मा प्राणी मात्र के कल्याण के लिए उपदेश देते
हुए कह रहे हैं कि हे मनुष्य ! यदि तूं सुख की कामना करता है , यदि तूं कल्याण की कामना करता है , यदि तूं मंगल की कामना करता है तो अपना नेता , अपना राजा , अपना सांसद , अपना राष्ट्रपति इस प्रकार का चुन , जिसके पास अत्यधिक क्षात्र - शक्ति हो | सब प्रकार की शक्तियों का वह स्वामी हो | यदि वह अत्यधिक , यदि वह अन्यतम शक्ति से संपन्न होगा तो शत्रु उसका नाम मात्र सुनकर ही थर - थर कांपने लगेंगे , वह उस देश पर आक्रमण करने का
विचार मात्र भी नहीं करेंगे, देश में किसी प्रकार के विद्रोह की संभावना ही नहीं रहेगी | इस प्रकार तुम सदा सुरक्षित रहोगे |
२ राजा ऐश्वर्यशाली हो
हे मानव ! अपने शासक का चुनाव करते समय यह ध्यान में रख कि तूं जिसे राजा चुन रहा है , वह निश्चय ही परमैश्वर्यशाली हो | जो धन धान्य से संपन्न होता है , उसे और धन की आवश्यकता नहीं होती | इसलिए वह कभी भी भृष्ट आचरण नहीं करता | राज्य की व्यवस्था और उत्तम संचालन के लिए धन की अत्यधिक आवश्यकता होती है | इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए उसे अनेक प्रकार के उपाय करने होते हैं | यदि राजा कुछ इस प्रकार का आ जावे , जिसके पास अपने जीवन यापन के लिए ही धन न हो तो वह जन - कल्याण के लिए एकत्र किये गए धन में से कुछ पर सेंध लगाते हुए उसका बड़ा भाग अपनी गांठ में भी बांधने का विचार कर सकता है | इससे देश के उत्थान के लिए , देश के कल्याण के लिए , देश के विकास के लिए जो धन की व्यवस्था की गयी थी , उसमें कमीं आ जावेगी तथा देश के विकास की गति मद्धम पड जावेगी | इसलिए ही यह मन्त्र आदेश देता है कि जिस राजा का चुनाव किया जाना है , चुनाव के समय यह जानना आवश्यक होता है कि वह स्वयं धन ऐश्वर्यों का स्वामी हो |
३ सदा विजयी होने की इच्छा
मन्त्र आगे उपदेश इस प्रकार कर रहा है कि जिसे हम अपना राजा चुनने जा रहे हैं , यह आवश्यक है कि वह सदा विजयी होने की इच्छा रखता हो तथा इस प्रकार के गुणों से संपन्न हो , जो गुण एक विजेता में होने चाहियें | वह अन्यतम वीरता के गुणों से भरा हो |
प्रत्येक प्रकार की चुनौती का सामना करने की क्षमता उसमें होवे | इतना ही नहीं वह ज्ञान का भी भंडारी हो | अत्यधिक ज्ञान के भण्डार से वह संपन्न हो ताकि वह न केवल उत्तम योजनाएं बना सके बल्कि इन बनाई गयी उत्तम योजनाओं का प्रयोग करने की भी उत्तम क्षमता उसमें हो | इस प्रकार के वीर , सर्वदा विजयी होने वाले उत्तम व्यवस्थापक व ज्ञानी व्यक्ति , जिसका कोई शत्रु न हो , इस प्रकार के व्यक्ति को ही अपना राजा चुना जाना योग्य है |
४ माता पिता भी उतम गुण वाले हों
जिस के पिता में भी वीरता, निर्भयता, ज्ञान के भण्डार , एश्वर्य के गुण तथा सुव्यवस्था के गुण रहे हों तथा माता भी सब प्रकार के उत्तम गुणों से संपन्न रही हो , इस प्रकार के माता - पिता वाले युवक को ही अपना राजा चुना जाना चाहिए |
५ सब को सुख्देने वाला
इस प्रकार के राजा का राजतिलक करते हुए पुरोहित प्रजा को भी संबोधित करते हुए कहता है कि हे मनुष्यों ! आप लोगों ने जिसे अपना राजा चुना है , वह सब को चन्द्र के समान शीतलता देने वाला है , सदा आप की शान्ति को बनाए रखने की उसमें शक्ति है | वह चन्द्र के समान आप सब को आह्लाद देने वाला है | इतना ही नहीं जिस प्रकार सोमलता के प्रयोग से सब प्रकार का आनंद मिलता है , उस प्रकार ही यह राजा आप को सब प्रकार का आनंद देने की शक्ति से , गुणों से संपन्न है | यह सब की तृप्ति करने वाला है तथा सब प्रकार की प्रसन्नताओं को बढाने वाला है | जिस राजा का चुनाव होने के पश्चात् मैं उसका राजतिलक कर रहा हूँ , वह राजा न केवल आप का ही राजा है बल्कि हम विद्वान् तथा ब्राह्मण लोग भी उसकी ही छत्रछाया में रहने वाले हैं | वह हमारा भी राजा है तथा हमारे साथ रहते हुए , हमारे गुणों तथा उपदेशों के अनुसार रहते हुए वह सब प्रकार की शोभाओं को , सफलताओं को , उन्नति को , यश और कीर्ति को प्राप्त करेगा , इस प्रकार का हमें विशवास है |
६. सब प्रकार के सुख देने वाला
इस सब का भाव स्पष्ट करते हुए मन्त्र में कहा गया है कि हे राजन् तथा इस राजा को चुनने वाली प्रजा के लोगो ! तुमने जो एक उत्तम माता - पिता के पुत्र को , जिसे उन माता - पिता ने सब प्रकार की विद्याओं का ज्ञान दिलवाकर सुशिक्षित किया है , उसे कुलीन बनाते हुए उसमें बहुत ही उत्तम गुणों , उत्तम गुणों रूप धर्म तथा उत्तम स्वभाव से युक्त किया है | इतना ही नहीं जिसे संयम में रहने की शिक्षा देते हुए जितेन्द्रिय आदि गुणों का स्वामी बनाया है | एक लम्बे समय तक ब्रह्मचारी रहते हुए ब्रह्म में विचरण कराया है अर्थात् कठोर तपस्वी व संयमी जीवन व्यतीत करते हुए उसकी उतम शिक्षा की व्यवस्था की है | इस प्रकार उसे सब प्रकार की उत्तम शिक्षा संपन्न करते हुए उसके शरीर और आत्मा को पूर्ण बल से युक्त कर अन्यतम बलवान् बनाने का सराहनीय कार्य किया है | इसके साथ ही साथ उसे धर्म का प्रेमी बनाकर विद्वत्ता से भर दिया है | प्रजा का पालन करने की अद्भुत शक्ति जिसमें भर दी गयी है | इस प्रकार के व्यक्ति को आप प्रजा ने अपना विधायक सांसद , सभापति , राजा अथवा राष्ट्रपति के रूप में चुनाव कर , उसे इस पदभार को सौंपा है | इस की छत्रछाया में रहते हुए आप सब सुखों का भोग करो |
इस प्रकार हम पाते हैं कि वेद यह स्पष्ट रूप से संकेत कर रहा है कि हमारे गुणों का होना आवश्यक है | जब तक इस देश में , जब तक विश्व में इस प्रकार के नेता का , इस प्रकार के राजा का चुनाव किया जाता रहा है , तब तक विश्व में सुख, शक्ति, सम्पन्नता बनी रही , ज्यों ही हमने चुनाव करते समय इन गुणों की तुला को , इन गुणों की तराजू को एक और रख कर भाई भतीजा वाद अथवा जाति को अधिमान देना आरम्भ किया, तब से ही देश में ही नहीं विश्व में स्वार्थियो की एक सेना सी खड़ी हो गई , छल ,कपट , भ्रष्टाचार आदि बुराइयां राजा लोगों में तेजी से बढ़ने लगीं | इस का प्रत्यक्ष प्रमाण हम भारत की विगत सरकार में देख चुके हैं | इस सब के कारण देश की साख विदेश में तो गिरी ही साथ ही शत्रुओं की शक्ति निरंतर बढती हुई दिखाई दी तथा देश की प्रजा भी सब और से संकटों में घिरती चली गई | इस लिए यह निश्चित है कि देश विदेश में ऊँची साख तथा प्रजा के सुखों को बढाने के लिए हम शासक का चुनाव करते समय वेद के इन आदेशों को ध्यान में रखते हुए , इन बताए गए गुणों से युक्त श्रेष्ठ व्यक्तित्व के धनी को ही अपना राजा चुनें |
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