फ्यूचर लाइन टाईम्स
मुनिवरों! देखो, द्वापर काल में महाराजा धृतराष्ट्र ने संजय से कहा था कि हे संजय! मैं महाभारत के संग्राम का वृतांत जानना चाहता हूँ। उस काल में संजय ने देखा, कोई तो कहत? ा है कि भगवान कृष्ण ने उसे दिव्य नेत्र दिए, परन्तु दिव्य नेत्र नहीं कहा जाएगा। वह भौतिक रूप का एक विज्ञान कहा जाएगा। यदि आज हम आध्यात्मिकता से सोचें तो जो भी वृतांत यन्त्रों के द्वारा आता है, वह मानव के नेत्रों में आ जाता है। इसी प्रकार हमारा या महानन्द जी का आत्मा है और भी ऋषियों की आत्मा है, जिन्होंने उस आध्यात्मिक विज्ञान को जाना है, वह जानते हैं कि आत्माओं का कैसा संगठन होता है। उनकी वाणी कहाँ की कहाँ चली जाती है। आपत्ति काल होने के कारण यह शरीर एक प्रकार का यन्त्र बनाया गया है। सूक्ष्म शरीर वाली आत्माओं का एक महान सत्संग रूप हो करके, उसकी वाणी हमारे शरीर द्वारा आने लगती है। यह वाणी किस प्रकार प्रकट होती है? एक शरीर में दो आत्माएं नहीं ,परन्तु आत्मा का उत्थान हो करके, सूक्ष्म शरीर वाली आत्माओं से सत्संग हो जाता है। उस सत्संग की वाणी हमारे शरीर द्वारा मृत मण्डल में प्रगट होने लगती है, जैसा भोगवश हमें भोगना है। अपने भोगों को इस प्रकार भोगने की क्रियाओं का स्पष्टीकरण किसी द्वितीय काल में करेंगे जब पुनः इसका यौगिक काल आएगा। आज तो केवल इतना उच्चारण करते चले जाएं कि जिस मानव ने इस रहस्य को जानना है, उसे सबसे पूर्व गम्भीर बनना है। अपनी त्रुटियों को त्यागना है, निराभिमानी बनना है। यौगिक क्रियाओं को जानना है। अपने आध्यात्मिक विज्ञान को जानना है। केवल भौतिक विज्ञान से काम न बनेगा। भौतिक विज्ञान के साथ साथ आध्यात्मिक विज्ञान को जानना होगा। जो आध्यात्मिक विज्ञान के व्यक्ति होंगे वह इस रहस्य को सहज में जान जाएंगे।
मुनिवरों! जिस व्यक्ति ने आध्यात्मिक विज्ञान को तो जाना नहीं, परन्तु कहता है कि मैं परमात्मा की सर्वज्ञ विद्या को, सर्वज्ञ यौगिक क्रियाओं को और सर्वज्ञ सिद्धान्तों को जानता हूँ, तो उस व्यक्ति का केवल एक वाक्य ही वाक्य है। वह कुछ नहीं कर सकता संसार में, वह तो अपनी “मैं” में ही बैठा हुआ है। अन्त में देखो! उसका जीवन संसार में न होने के तुल्य माना जाता है। जिस मानव ने आध्यात्मिक क्षेत्र में आ करके आध्यात्मिक ज्ञान और विज्ञान को नहीं जाना और उच्चारण ही उच्चारण करता है तो उसका केवल वाणी का रस रह गया है। शेष इन्द्रियों का जैसे श्रोत्र हैं, नेत्र हैं, उपस्थ इन्द्रियाँ हैं, गुदा है इन सबका विषय शान्त कर केवल वाणी का विषय लेकर आगे बढ़ा है। जो मानव वाणी का विषय लेकर आगे बढ़ते हैं, वह ज्ञान और विज्ञान में अधूरे रहते हैं। ज्ञानी तो बन जाते हैं, परन्तु आध्यात्मिक वैज्ञानिक नहीं बनते। संसार में कार्य तभी चलेगा, जब मानव के द्वारा आध्यात्मिक विज्ञान होगा। आध्यात्मिक विज्ञान उसी काल में आएगा जब हम किसी विषय को जानने के लिए शनैः शनैः योगी बनेंगे, तपस्वी बनेंगे। जब हमने अपने शरीर किसी प्रकार की विकाष्ठा भोगी ही नहीं, वह बेटा! पराकाष्ठा को क्या जाने। जिस मानव ने यौगिकता को जाना नहीं वह क्या जानता है, कि यौगिक क्रियाएं और योग कैसा होता है। वह केवल उच्चारण तो कर देता है परन्तु उस सम्बन्ध में जानता कुछ नहीं। आज जानने की आवश्यकता है, आज इन क्रियाओं को क्रियात्मक रूप से करने की आवश्यकता है। क्या करें, यदि आज परमात्मा, परम गुरुदेव ऐसा आपत्तिकाल न देते, स्वतः ही जन्म धारण करा देते और ज्ञान इसी प्रकार का प्रकट रहता तो हम इन सभी क्रियाओं को तुम्हारे समक्ष नियुक्त कर देते। आज क्या बनता है? कुछ नहीं। अपने भोगों को भोग रहे हैं। बेटा! इन्हें भोगकर हम भी चले जाएंगे। हम भी बेटा! उच्चारण ही उच्चारण करके चले जाएंगे। समय की प्रबलता है। आज कुछ नहीं कहा जा रहा है।
यह है बेटा! आज का हमारा मुख्य आदेश। हम उच्चारण करते चले जा रहे थे कि आज मानव को पुनः यौगिक क्रियाओं पर विचार लगाना है। अपने अभिमान को त्यागना है। अपनी त्रुटियों को देखना है। गम्भीरता पर पहुँचना है। आज हमें केवल इतना सूक्ष्म-सा ही आदेश देना था। आज हमारे आदेशों का अभिप्राय क्या? हम उच्चारण कर रहे थे, कि हमें ज्ञान और विज्ञान का जानने के लिए यौगिक बनना है। यौगिक प्रतिक्रियाओं को ऊँचा बनाना है। संसार की त्रुटियों को नहीं देखना है परन्तु अपनी त्रुटियों को देख कर चलना है। गम्भीर और निरभिमानी बनना है। उसी काल में हम संसार के ज्ञान औेर विज्ञान को जानने वाले बनेंगे। कल समय मिला तो शेष वार्त्ताएं कल होंगी। अब वेदों का पाठ होगा इसके पश्चात् हमारी वार्त्ता समाप्त हो जाएगी। (वेद पाठ)रात्रि ९.३० बजे। आर्य समाज, चूना मण्डी पहाड़गंज, नई दिल्ली।
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