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आलोचना के प्रति कृतज्ञता : राजेश बैरागी

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


मैं आज दो घोषणा करना चाहता हूं। पहली यह कि मैं गलतियों से परे नहीं हूं। दूसरी यह कि मैं मेरी आलोचना करने वाले सुधी पाठकों के प्रति कृतज्ञ हूं। गुरुवार 12 मार्च को मेरी पोस्ट 'बगावत का हक' पर अनेक लोगों ने प्रतिक्रिया व्यक्त की। ज्यादातर ने समर्थन किया। उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर जनपद के दो विद्वान मित्रों ने उक्त पोस्ट को बकवास तथा नानसेंस करार दिया। मेरे लिए उन दोनों विद्वान ‌साथियों की प्रतिक्रिया बेहद अहम है। मुझे ऐसी प्रतिक्रियाएं सतर्क रखती हैं। हालांकि मैं यहां दो बातें स्पष्ट करना जरूरी समझता हूं। पहली यह कि मैं किसी राजनीतिक दल के प्रति निष्ठावान नहीं हूं और दिन-प्रतिदिन के हिसाब से गलत अथवा सही लगने वाले विषय पर मेरा लेखन केंद्रित रहता है। दूसरी यह कि सरकारों की दृढ़ता, सख्ती व ईमानदार कोशिशों का मैं हामी रहता हूं जबकि अफसरों, अपराधियों को मुक्तहस्त देने वाली सरकारों को मैं तब भी सहन नहीं करता जबकि वे फ्री लैपटॉप ही क्यों न बांटें। जहां तक बगावत का प्रश्न है तो यह कभी भी प्रायोजित नहीं होनी चाहिए। अन्याय के विरुद्ध बगावत अवश्य की जानी चाहिए। सरकार के कान तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए हर नागरिक स्वतंत्र है, पत्थर फेंकने के लिए नहीं।इसी प्रकार एक घंटे के लिए भी सड़क कब्जा कर विरोध प्रदर्शन करना जायज नहीं है। सिंधिया की कांग्रेस से बगावत ऐसी ही है जिसमें निहित स्वार्थ के अतिरिक्त कुछ नहीं है। भाजपा एक राजनीतिक दल है और उसका भी नैतिकता से उतना ही बैर है जितना दूसरे दलों का। शायद अब मेरे विद्वान आलोचकों को मेरे प्रति असहिष्णु होने का कष्ट नहीं उठाना होगा। फिर भी आलोचना का हमेशा स्वागत रहेगा


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