फ्यूचर लाइन टाईम्स
डा. रामेश्वर दयाल पुरंग का जन्म 13 मार्च, 1918 को ग्राम आदमपुर (जिला जालंधर, पंजाब) में हुआ था। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से एम.बी.बी.एस. करते समय उन्होंने संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार के पहली बार दर्शन किये। वे उन दिनों वहां शाखा विस्तार के लिए आये हुए थे। युवा रामेश्वर दयाल ने जब उनके प्रखर विचार सुने, तो वे सदा के लिए संघ से जुड़ गये।
1940 में नागपुर के जिस संघ शिक्षा वर्ग में डा. हेडगेवार ने अपने जीवन का अंतिम भाषण दिया था, उसमें रामेश्वर दयाल जी भी उपस्थित थे। संघ कार्य विस्तार के लिए डा. हेडगेवार के मन की तड़प उस भाषण में प्रकट हुई थी। इसका डा. पुरंग के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होंने जीवन भर संघ कार्य करने का निश्चय कर लिया।
1941 में शिक्षा पूर्ण कर उन्होंने उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में चिकित्सा कार्य प्रारम्भ किया। उन दिनों वहां आचार्य गिरिराज किशोर जी संघ के प्रचारक होकर आये थे। समवयस्क होने के कारण दोनों में अच्छी मित्रता हो गयी। डा. पुरंग चिकित्सालय के बाद का अपना पूरा समय शाखा के विस्तार में लगाने लगे। इससे मैनपुरी जिले में सुदूर गांवों तक शाखाओं का विस्तार हो गया।
डा. पुरंग ने चिकित्सा कार्य को केवल धनोपार्जन का साधन नहीं माना। उनके मन में समाजसेवा की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी। इस कारण उनकी ख्याति तेजी से सब ओर फैल गयी। दूर-दूर से लोग उनसे चिकित्सा कराने के लिए आते थे। संघ कार्य में सक्रियता के कारण उन्हें विभिन्न दायित्व दिये गये। लम्बे समय तक वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रान्त संघचालक रहे।
डा. पुरंग गोसेवा एवं गोरक्षा के प्रबल पक्षधर थे। 1966 में गोहत्या बंद करने की मांग को लेकर चलाये गये हस्ताक्षर अभियान में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। वे रात में गांवों में जाते थे तथा लोगों को जगा-जगाकर हस्ताक्षर कराते थे। 1967 में जब गोरक्षा के लिए सत्याग्रह हुआ, तब वे जेल भी गये। 1975 में जब देश में आपातकाल थोपकर संघ पर प्रतिबंध लगाया गया, तो उन्होंने झुकने की बजाय सहर्ष कारावास में जाना स्वीकार किया।
डा. पुरंग ने मैनपुरी जिले में पूर्व सैनिकों का एक अच्छा संगठन खड़ा किया। उन्होंने देखा कि इनमें जहां एक ओर देशभक्ति तथा अनुशासन भरपूर होता है, वहां छुआछूत और खानपान में भेदभाव भी नहीं होता। उन्हें लगा कि ऐसे लोग समाज और संगठन के लिए बहुत उपयोगी हो सकते हैं।
आगे चलकर संघ ने अखिल भारतीय स्तर पर ‘पूर्व सैनिक सेवा परिषद’ नामक संगठन बनाया। इसके पीछे भी प्रेरणा डा. पुरंग की ही थी। आज तो इस संगठन का विस्तार पूरे देश में हो गया है। यह पूर्व सैनिकों को संगठित कर बलिदानी सैनिकों के परिवार तथा गांवों के विकास के लिए काम कर रहा है।
नब्बे के दशक में जब ‘श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन’ ने तेजी पकड़ी, तब वे ‘विश्व हिन्दू परिषद’ के पश्चिमांचल क्षेत्र के अध्यक्ष थे। अतः उन्होंने सहर्ष एक बार फिर जेल-यात्रा की। इसके बाद विश्व हिन्दू परिषद के उपाध्यक्ष तथा गोसेवा समिति के अध्यक्ष के नाते भी उन्होंने काम किया।
मैनपुरी की हर सामाजिक गतिविधि में डा. पुरंग की सक्रिय भूमिका रहती थी। वे मैनपुरी के सरस्वती शिशु मंदिर के संस्थापक तथा आचार्य रामरतन पुरंग सरस्वती शिशु मंदिर के संरक्षक थे। 12 मार्च, 2004 को वृद्धावस्था के कारण दिल्ली में अपने पुत्र के निवास पर उनका देहांत हुआ।
संदर्भ : हिन्दू विश्व, अपै्रल द्वितीय/आर्गनाइजर 4.4.2004
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