फ्यूचर लाइन टाईम्स
तलाक एक कटु हास्य है। विवाह एक पहेली है और तलाक दूसरी। दिल्ली की महिला आयोग अध्यक्ष स्वाति मालीवाल महिलाओं के हक में आक्रामक तरीके से आवाज उठाते उठाते खुद तलाक ले बैठीं।उनका अपने पति और हरियाणा में आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष नवीन जयहिंद से संबंध विच्छेद हो गया। उन्होंने एक ट्वीट के जरिए कहा,-परियों की कहानी खत्म हुई।' ऐसा कहते समय वो प्रसन्न नहीं थीं। उन्होंने ईश्वर से इस अप्रिय फैसले को सहने की शक्ति देने की प्रार्थना की। मुझे उनके पारिवारिक ढांचे की कोई जानकारी नहीं है। समाचार माध्यमों से पता चला कि कुछ वर्षों से वे पति से अलग अपने नाना नानी व मां के साथ रह रही हैं। पुनः दोहराता हूं कि स्वाति मालीवाल दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष हैं। तो क्या उनका तलाक महिलाओं के लिए नजीर बनेगा? मेरी भांजी डीयू की प्रथम वर्ष की छात्रा ने मेरी कल की पोस्ट 'माता-पिता की लड़ाई में हारते बच्चे' पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा कि,-दुखी होकर साथ रहने से अच्छा अलग होना है।' मैं भी फिल्म गुमराह के गीत की इन पंक्तियों से सहमत हूं,-वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा।' स्त्री-पुरुष संबंधों में विच्छेद की व्यवस्था कब से है मुझे नहीं मालूम परंतु इस अप्रिय मुकाम तक पहुंचने वाले पति-पत्नी शेष जीवन कैसा जीते हैं,यह शोध का विषय हमेशा बना रहेगा।बंधन से मुक्ति के बाद भी मुक्ति कहां है? खुद को न बदलने वाले दूसरे से बदल जाने की अपेक्षा रखते हैं। तलाक का यदि यही आधार है तो इससे ज्यादा कटु हास्य और क्या हो सकता है।
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