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सुरसा के मुंह जैसा बढ़ रहा है निजी अस्पताल उद्योग : राजेश बैरागी

फ्यूचर लाइन टाईम्स


जनस्वास्थ्य की चिंता में दुबले होते जा रहे सरकारी अस्पतालों के मुकाबले निजी चिकित्सा संस्थानों की सेहत में दिन-प्रतिदिन इजाफा क्यों हो रहा है? इसके साथ ही बीमा कंपनियों को चिकित्सा दावों के भुगतान में प्रतिवर्ष ज्यादा जेब ढीली क्यों करनी पड़ रही है।
भारत में 130 करोड़ लोगों की आबादी पर सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का आच्छादन कवर आज भी बेहद कम है। सरकारी अस्पतालों में हर सुबह लगने वाली लंबी लाइनों, चिकित्सकों के शुष्क व्यवहार और जांच प्रक्रियाओं के झंझटों में रोगी के साथ उसके तीमारदारों की भी जान पर बन आती है। आंकड़ों में देखें तो देश भर में सरकारी अस्पतालों की संख्या बीस हजार से कम 19817 है जबकि निजी अस्पताल इससे चार गुना से ज्यादा 80671 हैं। सरकारी स्वास्थ्य केंद्र व सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों की कुल संख्या 29635 है और निजी स्वास्थ्य केंद्र दो लाख से अधिक हैं।इसी प्रकार देश में उपलब्ध 10 लाख 23 हजार एलोपैथिक डॉक्टरों में से मात्र 1 लाख 13 हजार डाक्टर ही सरकारी सेवा में हैं।शेष 9 लाख से अधिक डाक्टर अस्पताल उद्योग में कार्यरत हैं। साढ़े छः लाख गांवों वाले इस देश में अभी भी गांवों और कस्बों में अच्छी तथा सुलभ चिकित्सा सुविधा दुर्लभ बनी हुई है। एक रिपोर्ट के मुताबिक निजी अस्पताल चिकित्सा के बदले सात गुना ज्यादा धन वसूलते हैं। निजी अस्पतालों द्वारा प्रतिवर्ष 10 से 15 प्रतिशत चिकित्सा दरें बढ़ा दी जाती हैं। स्वास्थ्य बीमा कंपनियों को चिकित्सा दावों के भुगतान में पसीने छूट रहे हैं। एसोचैम के एक कार्यक्रम में भारतीय बीमा नियामक प्राधिकरण की सदस्य टी एल अलामेलू ने निजी अस्पतालों के बढ़ते बिलों और नियमित टैरिफ में बदलाव को लेकर चिंता जाहिर की। उन्होंने बताया कि इरडा इलाज से जुड़ी कुछ प्रक्रियाओं के शुल्कों के मानक तैयार करने की योजना बना रहा है। अस्पतालों के भारी भरकम बिलों, उनके चिकित्सा दावों के मुकाबले बीमा कंपनियों के स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम में हर साल बढ़ोतरी नहीं की जाती है।
     गौरतलब है कि देश में निजी अस्पताल उद्योग के इस वर्ष 28 हजार करोड़ रुपए से अधिक हो जाने की संभावना है। एक अस्पताल खोलने वाले लोग अगले कुछ वर्षों में ग्रुप ऑफ होस्पिटल्स में बदल जाते हैं। सरकारी अस्पतालों की अव्यवस्था डराती हैं तो निजी अस्पतालों की लूटमार लोगों को बर्बाद करने वाली है। मेदांता अस्पताल के स्वामी डॉ नरेश त्रेहन अस्पतालों की गलतियों पर उनके लाइसेंस रद्द करने को गलत ठहराते हैं। इसके बजाय वे अस्पतालों के लिए एक समान नीति बनाने की सलाह देते हैं। हालांकि नरेश त्रेहन समेत निजी अस्पतालों के मठाधीश यह बताने को तैयार नहीं हैं कि ईश्वर के अवतार और दुखियों की सेवा करने की शपथ लेने वाले डॉक्टर उद्योगपति और लुटेरे क्यों बन गए।


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