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श्लोक : संजय उवाच

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


एवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तप।
न योत्स्य इतिगोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह॥


अनुवाद : संजय बोले- हे राजन्‌! निद्रा को जीतने वाले अर्जुन अंतर्यामी श्रीकृष्ण महाराज के प्रति इस प्रकार कहकर फिर श्री गोविंद भगवान्‌ से 'युद्ध नहीं करूँगा' यह स्पष्ट कहकर चुप हो गए
 ॥9॥
श्लोक : तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत।
 सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदंतमिदं वचः॥


अनुवाद : हे भरतवंशी धृतराष्ट्र! अंतर्यामी श्रीकृष्ण महाराज दोनों सेनाओं के बीच में शोक करते हुए उस अर्जुन को हँसते हुए से यह वचन बोले
 
 ॥10॥


श्लोक : ( सांख्ययोग का विषय )
 श्री भगवानुवाच
 अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।
 गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः॥


अनुवाद : श्री भगवान बोले, हे अर्जुन! तू न शोक करने योग्य मनुष्यों के लिए शोक करता है और पण्डितों के से वचनों को कहता है, परन्तु जिनके प्राण चले गए हैं, उनके लिए और जिनके प्राण नहीं गए हैं उनके लिए भी पण्डितजन शोक नहीं करते
 ॥11॥



श्लोक : न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।
 न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्‌॥


अनुवाद : न तो ऐसा ही है कि मैं किसी काल में नहीं था, तू नहीं था अथवा ये राजा लोग नहीं थे और न ऐसा ही है कि इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे
 ॥12॥



श्लोक : देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।
 तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति॥


अनुवाद : जैसे जीवात्मा की इस देह में बालकपन, जवानी और वृद्धावस्था होती है, वैसे ही अन्य शरीर की प्राप्ति होती है, उस विषय में धीर पुरुष मोहित नहीं होता।13॥


 


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