-->

श्लोक : संजय एवं अर्जुन उवाच:

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


श्लोक : यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः।
 धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत्‌॥


अनुवाद : यदि मुझ शस्त्ररहित एवं सामना न करने वाले को शस्त्र हाथ में लिए हुए धृतराष्ट्र के पुत्र रण में मार डालें तो वह मारना भी मेरे लिए अधिक कल्याणकारक होगा
 ॥46॥


श्लोक : संजय उवाच
 एवमुक्त्वार्जुनः सङ्‍ख्ये रथोपस्थ उपाविशत्‌।
 विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः॥


अनुवाद : संजय बोले- रणभूमि में शोक से उद्विग्न मन वाले अर्जुन इस प्रकार कहकर, बाणसहित धनुष को त्यागकर रथ के पिछले भाग में बैठ गए
 ॥47॥
ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादेऽर्जुनविषादयोगो नाम प्रथमोऽध्यायः। 
 ॥1॥


श्लोक : ( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )
 संजय उवाच
 तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्‌।
 विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः॥


अनुवाद : संजय बोले- उस प्रकार करुणा से व्याप्त और आँसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त उस अर्जुन के प्रति भगवान मधुसूदन ने यह वचन कहा
 ॥1॥


श्लोक : श्रीभगवानुवाच
 कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्‌।
 अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।


अनुवाद : श्रीभगवान बोले- हे अर्जुन! तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ? क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग को देने वाला है और न कीर्ति को करने वाला ही है
 ॥


श्लोक : क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
 क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप॥


अनुवाद : इसलिए हे अर्जुन! नपुंसकता को मत प्राप्त हो, तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती। हे परंतप! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर युद्ध के लिए खड़ा हो जा
 ॥3॥


 


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ