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श्लोक : अर्जुन उवाच:

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


श्लोक : निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव।
 न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे॥


अनुवाद : हे केशव! मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूँ तथा युद्ध में स्वजन-समुदाय को मारकर कल्याण भी नहीं देखता
 ॥31॥


श्लोक : न काङ्‍क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च।
 किं नो राज्येन गोविंद किं भोगैर्जीवितेन वा॥



अनुवाद : हे कृष्ण! मैं न तो विजय चाहता हूँ और न राज्य तथा सुखों को ही। हे गोविंद! हमें ऐसे राज्य से क्या प्रयोजन है अथवा ऐसे भोगों से और जीवन से भी क्या लाभ है?
 ॥32॥


श्लोक : येषामर्थे काङक्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च।
 त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च॥


अनुवाद : हमें जिनके लिए राज्य, भोग और सुखादि अभीष्ट हैं, वे ही ये सब धन और जीवन की आशा को त्यागकर युद्ध में खड़े हैं
 ॥33॥



श्लोक : आचार्याः पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहाः।
 मातुलाः श्वशुराः पौत्राः श्यालाः संबंधिनस्तथा॥


अनुवाद : गुरुजन, ताऊ-चाचे, लड़के और उसी प्रकार दादे, मामे, ससुर, पौत्र, साले तथा और भी संबंधी लोग हैं 
 ॥34॥



श्लोक : एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन।
 अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते॥


अनुवाद : हे मधुसूदन! मुझे मारने पर भी अथवा तीनों लोकों के राज्य के लिए भी मैं इन सबको मारना नहीं चाहता, फिर पृथ्वी के लिए तो कहना ही क्या है?
 ॥35॥


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