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श्लोक : अर्जुन उवाच:

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


श्लोक : निहत्य धार्तराष्ट्रान्न का प्रीतिः स्याज्जनार्दन।
 पापमेवाश्रयेदस्मान्‌ हत्वैतानाततायिनः॥


अनुवाद : हे जनार्दन! धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें क्या प्रसन्नता होगी? इन आततायियों को मारकर तो हमें पाप ही लगेगा
 ॥36॥


श्लोक : तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान्‌।
 स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधव॥


अनुवाद : अतएव हे माधव! अपने ही बान्धव धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारने के लिए हम योग्य नहीं हैं क्योंकि अपने ही कुटुम्ब को मारकर हम कैसे सुखी होंगे?
 ॥37॥


श्लोक : यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः।
 कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम्‌॥
 कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम्‌।
 कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन॥


अनुवाद : यद्यपि लोभ से भ्रष्टचित्त हुए ये लोग कुल के नाश से उत्पन्न दोष को और मित्रों से विरोध करने में पाप को नहीं देखते, तो भी हे जनार्दन! कुल के नाश से उत्पन्न दोष को जानने वाले हम लोगों को इस पाप से हटने के लिए क्यों नहीं विचार करना चाहिए?
 ॥38-39॥


श्लोक : कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः।
 धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत॥


अनुवाद : कुल के नाश से सनातन कुल-धर्म नष्ट हो जाते हैं तथा धर्म का नाश हो जाने पर सम्पूर्ण कुल में पाप भी बहुत फैल जाता है
 ॥40॥


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