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राजघाट के उस तरफ : राजेश बैरागी

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


हमने डेढ़ सौ साल में क्या खोया है? महात्मा गांधी के डेढ़ सौ वें जन्म जयंती साल में यह सवाल पूरे शबाब पर है। यदि हम दिल्ली में गांधी समाधि के उस पार देखें तो मौजपुर, जाफराबाद,कर्दमपुरी, सुदामापुरी, करावलनगर सब नज़र आ जायेंगे। बीते दो दिनों में यहां हिंसा का तांडव हुआ है। फरवरी 27 की शाम तक मृतकों की संख्या दो दर्जन से अधिक हो चुकी थी। यह मात्र संख्या नहीं है। हिंदू या मुसलमान कोई मरा हो, धरती पर गिरने वाले का धर्म चाहे जो रहा हो, मौत गोली, लाठी, डंडे या पेट्रोल बम से हुई हो, इंसानियत का कत्लेआम हुआ है। कश्मीर में पत्थरबाजी रुकी तो उसने दिल्ली का रुख किया। दिल्ली को छोड़कर मैंने शेष राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लोगों को बेफिक्र देखा।लोग इस हिंसा के सियासी नफे-नुकसान पर बात कर रहे थे। गाजियाबाद के जिलाधिकारी ने मंगलवार शाम साढ़े चार बजे से शराब की दुकानें बंद करा दी थीं। क्या लोग शराब के खुमार में किसी की जान लेते हैं? गांधी जी का अहिंसा का सिद्धांत और मद्य विरोध इसीलिए था। मैं इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता। हिंसा करने वाले पर सियासत का, सत्ता का नशा तारी रहता है।उसे होश नहीं रहता या उसे होश आने नहीं दिया जाता। तैमूर लंग, चंगेज खान, हिटलर सब रक्त पिपासु थे। उन्होंने इंसान के जीने के अधिकार का अपहरण किया था। उन्हें इतिहास ने याद रखा इतिहास इन्हें भी भूलेगा नहीं


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