फ्यूचर लाइन टाईम्स
मुझे पुनः इस विषय पर आना पड़ा। नोएडा प्राधिकरण की वर्तमान प्रमुख सीईओ रितु माहेश्वरी फिलहाल किसानों के आंदोलन से जूझ रही हैं। किसानों के साथ उनकी समझौता वार्ता पिछले दिनों विफल रही। ऐसा किसी पुरुष प्रमुख के साथ भी हो सकता है। परंतु प्राधिकरण के अतीत में देखने पर महिला प्रमुखों के कार्यकालों में बहुत समानताएं दिखाई पड़ती हैं। बहुत पहले रीता सिन्हा यहां मुख्य कार्यपालक अधिकारी थीं। उनकी तत्कालीन चेयरमैन बृजेन्द्र सहाय से पटरी नहीं बैठी तो चेयरमैन ने एसीईओ अमरेंद्र सिन्हा से मिलकर सीईओ के कार्यालय पर ताला जड़वा दिया। उस दिन प्राधिकरण शीर्ष अधिकारियों का अखाड़ा बन गया था।नीरा यादव का कार्यकाल कौन भूल सकता है। उद्यमियों, किसानों से लेकर राजनीतिक लोगों और स्टाफ तक सबसे उन्होंने मोर्चा लिया और परिणाम यह रहा कि इसी शहर में उन्हें न्यायिक जांच आयोग के समक्ष मुजरिम के तौर पर पेश होना पड़ा।ऊषा चतरथ व सुनीता कांडपाल केवल अध्यक्ष पद पर रहीं।उनका जनता से सीधा जुड़ाव नहीं हो सका परंतु कुछ निर्णयों को लेकर उद्योग मार्ग को एकल दिशा मार्ग घोषित करने अथवा इसी मार्ग पर डिवाइडर लगवाने को लेकर शहर के संगठनों ने उनके विरुद्ध मोर्चा खोला। क्या सभी महिला अधिकारी स्वभाव से कड़क होती हैं? मैं इस बात से सैद्धांतिक तौर पर सहमत नहीं हूं। मुझे लगता है कि महिला अधिकारियों को पुरुष प्रधान समाज सहज स्वीकार नहीं करता। महिला अधिकारी भी समाज के साथ एक निश्चित दूरी बनाकर रखती हैं। किन्हीं महिला अधिकारियों के जो खास किस्से दंतकथाओं की भांति सुने-सुनाए जाते हैं उनमें उनकी अकड़ और दृढ़ता का ही वर्णन होता है,सहज सामान्यता का नहीं। सीईओ रितु माहेश्वरी की छवि भी यही बन रही है।
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