फ्यूचर लाइन टाईम्स
मुफ्त में संसाधन बांटकर संभवतः केजरीवाल सरकार दिल्ली के तख्त पर वापसी कर रही है। मुफ्त की आदत सिद्धांतों पर भारी पड़ती है। हालांकि दिल्ली देश का इकलौता ऐसा महानगर और राष्ट्रीय राजधानी भी है जिसकी अपनी कोई विचारधारा नहीं है। यहां के मूल निवासी गुर्जर,जाट और राजपूत अपनी ही जमीन पर बेगाने से हैं। पाकिस्तान छोड़कर आये पंजाबी शरणार्थी आबादी, संपत्ति और व्यापार के एक बड़े हिस्से पर काबिज हैं।शेष भाग पर बिहार, बंगाल, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे देशों से भी आये हुए लोग हैं जो दिल्ली की राजनीति व रीति नीति के लिए चुनौती बन गए हैं। इन्हीं लोगों के लिए 'संसाधनों का मुफ्तीकरण' चुनावी जीत का अचूक फॉर्मूला बन गया। आपको याद होगा कि लैंडलाइन फोन पर बात करने में समय का ध्यान न रखने वाले लोगों के कनेक्शन अक्सर कट जाया करते थे। मोबाइल फोन की शुरुआत में महंगी कॉल दरों के कारण लोगों में मिस्ड कॉल करने की प्रवृत्ति ने जन्म लिया। वक्त के साथ आउटगोइंग कॉल मुफ्त हुईं तो फोन पर इश्क फरमाने वालों से लेकर निठल्ले लोग तक फोन पर टंगे रहने लगे। अब फिर कॉल्स के पैसे लगने लगे हैं तो इनकमिंग कॉल्स का महत्व भी बढ़ने लगा है। मिस्ड कॉल का जमाना फिर लौट रहा है। मुफ्तखोरी स्थाई चीज न होने के बावजूद आदत बन जाती है। दिल्ली की जनता की समझदारी पर संदेह नहीं परंतु मुफ्त का आकर्षण किसी की भी समझदारी को चकमा दे सकता है।
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