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कुछ खास बदला नहीं लखनऊ : राजेश बैरागी

फ्यूचर लाइन टाईम्स 



कई वर्षों बाद लखनऊ आया। यूपी रोडवेज के जनरथ से आज सुबह जब आलमबाग पहुंचा तो शहर जाग चुका था मगर नगर निगम कहीं सोया पड़ा था। सड़कों पर गंदगी का आलम आलमबाग की बेनूरी की कहानी कह रहा था। यहां मेट्रो है। यदि महानगरों में मेट्रो न आती तो हवा की तासीर और दमघोंटू होती। फिर भी तिपहिया वाहनों का आतंक सड़क को गिरफ्तार किए रहता है। आलमबाग से आदिल नगर कोई बीस किलोमीटर है। सड़कों पर अतिक्रमण वैसा ही है।जगह जगह पूर्व महापौर दिनेश शर्मा के शिलापट्ट लगे हैं। दिनेश शर्मा अब उपमुख्यमंत्री हैं। उन्होंने न तब अतिक्रमण हटवाया था और न अब। लखनऊ में पुलिस आयुक्त प्रणाली हो गई है। पुलिस चौकियों के आगे सड़क पर वैसी ही जाम की स्थिति है। नियमों को तोड़कर सड़क का इस्तेमाल करने वाले आयुक्त प्रणाली से उतना ही खौफ खाते हैं जितना पहले। लखनऊ नवाबों का शहर है। इसमें बाग ही बाग हैं। आलमबाग, कैसरबाग,डॉलीबाग परंतु दरख्तों की तलाश परिंदों को भी है। शहर के विस्तार में कुछ इलाके खूबसूरत हैं, लोग तहजीब बंद हैं, नजाकत भी है मगर नफासत गुम हो गई है। कहा जाता है कि सूबे भर से मुरादें लेकर इस शहर में अनेक तनीमंद लोग सियासत के दरवाजों पर आते हैं।हर किसी की अपनी कहानी है,हर किसी का अपना जलवा।अदब के शहर की ऐसी बानगी लेकर वापस लौट चला हूं। एक स्मार्ट शहर बनने की ख्वाहिश इस शहर की भी है।


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