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दिल्ली में राष्ट्रवाद बनाम राज्यवाद : राजेश बैरागी

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


यदि मैं ये कहूं कि दिल्ली में विधानसभा चुनाव निरर्थक था और तमाम जनश्रुतियों के आधार पर दोनों पार्टियां आप व भाजपा इस निर्णायक समझौते पर पहुंच जाते कि आप भाजपा के लिए इस बार पांच सीट छोड़ देगी तो कितना अच्छा होता। परंतु डॉ लोहिया के शब्दों में जिस प्रकार जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करतीं,उसी प्रकार राजनीतिक दल बगैर लड़े हारने को तैयार नहीं होते। भाजपा किसी मुगालते में नहीं थी, उसे अपने राष्ट्रवाद का जरूरत से ज्यादा भरोसा था।भूख,गरीबी और बेरोजगारी राष्ट्रवाद की दुश्मन होती है परंतु मुफ्तखोरी इन सबके ऊपर नृत्य करती है। यदि फरवरी 2019 में पुलवामा के लगायत बालाकोट न हुआ होता तो मोदी जी के कुशल नेतृत्व के बावजूद भाजपा लोकसभा में जरूरी बहुमत के लिए कुछ ऐसे दलों की बैसाखियों की मुहताज होती जिनका वजूद ही आज खतरे में है। मुफ्त पानी, बिजली और बस, मेट्रो में मुफ्त यात्रा के बगैर आप की सत्ता यात्रा क्या अक्षुण्ण रह पाती। राष्ट्रवाद एक मजबूत राष्ट्र के लिए आवश्यक है और राष्ट्रीय चुनाव जीतने के लिए भी। जहां तक राज्यों का प्रश्न है तो वहां चुनाव लड़ने के लिए एक अदद भरोसेमंद चेहरे की जरूरत होती है। भाजपा लगातार मात खाने के बावजूद इस सत्य को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। कुकुरमुत्ते की तरह उगी आम आदमी पार्टी ने दिल्ली को राजनीति की ऐसी प्रयोगशाला बना दिया है जिसमें राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मुद्दे धूल खा रहे हैं। क्या देश अब नागरिकों को संसाधनों पर मुफ्त की हद तक रियायतें देने से चलेगा? यदि देश ऐसे नहीं चलेगा तो सूखे राष्ट्रवाद और घोर सांप्रदायिकता से भी नहीं चलेगा। भाजपा सीखने से पहले भूलने और उससे भी ज्यादा न मानने की बीमारी से ग्रस्त हो गई है। परंतु इलाज तो उसका हो जो खुद को बीमार तो माने।


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