फ्यूचर लाइन टाईम्स
यदि कोई अधिकारी छोटी छोटी रिश्वत लेता हो तो आम जन मानस में उसकी कैसी छवि बनेगी? जनपद गौतमबुद्धनगर की एक तहसील में एक अधिकारी केवल मुकदमे सुनने के लिए नियुक्त हैं। सरकार की मंशा है कि मुकदमों के अंबार को निपटाने के लिए हर तहसील में ऐसे अधिकारी नियुक्त किये जाने चाहिएं और उन्हें शेष प्रशासनिक कार्यों से मुक्त रखा जाना चाहिए। सरकार की मंशा तो ठीक परंतु केवल मुकदमे सुनने वाला अधिकारी अमीरी कैसे हासिल करे।सो उसने मुकदमों को ही आमदनी का जरिया बनाया और आदेश लिखवाने के बावजूद मुकदमे को पुनः सुनवाई में लगवा दिया। ऐसे ही एक मामले के एक पक्षकार अपना दुखड़ा रो रहे थे।उनका ऐतराज अधिकारी के घूसखोर होने पर नहीं था। उन्हें अधिकारी के छोटा घूसखोर होने का मलाल था।वो बोले,-ऐसे न्याय कैसे मिल सकता है।' हालांकि साथ ही उन्होंने बताया कि राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर उन्होंने अपना काम तो निकाल लिया। दरअसल इस प्रकरण से कुछ बातें स्पष्ट होती हैं। योगी-मोदी कोई शासक हों और उनकी मंशा चाहे जो हो, अधिकारी वर्ग के अपने कमाने खाने के लक्ष्य निर्धारित हैं।दूसरा आम जनता अधिकारियों के भ्रष्ट होने से उतनी त्रस्त नहीं है जितनी उनके भ्रष्टता के गिरते स्तर से है। तीसरे जनता अभी भी न्याय के लिए अंततः नेताओं पर भरोसा करती है इसलिए राजनीति के अधोपतन के बावजूद नेताओं की बूझ बनी रहेगी। नेता व अधिकारी ऐसा जंजाल हैं जिन्होंने आम जनता को भ्रष्टाचार को अनिवार्य रूप से स्वीकारने पर बाध्य कर दिया
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