फ्यूचर लाइन टाईम्स
कासिम सुलेमानी ईरान के सर्वोच्च सैन्य कमांडर की हत्या के बाद मध्य एशिया में एक बार फिर माहौल अशांत होने का संकट बढ़ गया है। ईरान ने जवाबी कार्रवाई में इराक स्थित अमेरिका के दो एयरबेस पर मिसाइल फेंककर अपनी आपातकालीन रुसवाई पर थोड़ी रोक लगा ली है। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के इस बयान को पाकिस्तान के उस बयान से जोड़कर देखा जाना चाहिए जो पाकिस्तान ने पिछले वर्ष पुलवामा हमले के बाद भारत द्वारा बालाकोट में की गई हवाई सर्जिकल स्ट्राइक के बाद दिया था। पाकिस्तान ने तब कहा था,-हमारा कोई नुक्सान नहीं हुआ है, भारतीय वायुसेना कुछ सूखे पेड़ों पर बम गिराकर गयी है। फिर भी ट्रंप के द्वारा इस समय रखे गए धैर्य का स्वागत किया जाना चाहिए। हालांकि यह शांति कितनी स्थाई है इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता। दरअसल सोवियत संघ के पतन के पश्चात एक ध्रुवीय विश्व में अमेरिका एक ऐसा देश बन गया है जो मुस्लिम देशों खासकर मध्य एशिया के मुस्लिम देशों को अपने इशारों पर चलाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। मुस्लिम देश भी आपस में एक न होकर अमेरिका की राह ही आसान कर रहे हैं। ईरान से भारत के रिश्ते हमेशा अच्छे रहे हैं। हमारे ईरान के साथ महत्वपूर्ण हितों की साझेदारी है। अमेरिका के साथ रिश्तों की बिना पर ईरान से सामान्य रिश्ते रख पाना चुनौतीपूर्ण है। भारत के वर्तमान नीति नियंताओं की यह परीक्षा की घड़ी है। अमेरिका अपने हितों के समक्ष दूसरे के हितों को कभी महत्व नहीं देता। ट्रंप का यह चुनावी वर्ष होने से यह समस्या और विकट हो गई है।
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