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वीर शिरोमणि महाराणाप्रताप की 423 वी_पुण्यतिथि धूमधाम से मनाई

फ्यूचर लाइन टाईम्स


दादरी क्षेत्र के ग्राम रसूलपुर में वीर शिरोमणि महाराणाप्रताप की 423 वी पुण्यतिथि धूमधाम से मनाई गई और उपस्थित व्यक्तियों ने अपने सुझाव रखे महाराणा प्रताप के बारे में यूंही नही महाराणा को राजाओ का राजा कहा जाता है. इसके पीछे हैं ये खास बजह है ,यूँही नही महाराणा को राजाओं का राजा कहा जाता है .कुछ तो बजह होगी तभी तो महाराणा को इतिहास ने एक योद्धा – स्वाभिमानी – शौर्य – त्याग – सँघर्ष में सबसे ऊपर रखा है..आइये जाने क्या है वो बजह ऐतिहासिक साक्ष्य के साथ ..


महाराणा की महानता इसमें भी नहीं है कि वे प्रतापी वीर थे.महाराणा की महानता केवल इसमें नहीं है कि वे केवल लड़ाकू थे. महाराणा प्रताप की महानता इसमें निहित है कि वे जानते थ वर्तमान समये में कि अकबर जैसी विश्व की सबसे शक्तिशाली सेना से वे जीत नही सकते थे . उस बक्त कोई राजा क्रूर अकबर से लड़ने की कल्पना भी नही कर सकता था तब महाराणा ने अकबर को हराने की हठ की थी . अकबर की लाखों की सेना और बार बार दी गयी चेतावनी के बावजूद स्वयं और भारत के स्वाभिमान को अकबर के सामने झुकने नही दिया।जंगल जंगल भटके.घास की रोटी खाई!भूख के कारण बेटी की जंगल में मृत्यु हो गई .तब भी विदेशी बादशाह अकबर के सामने सर नही झुकाया!जबकि अकबर ने महाराणा को, स्वयं के बाद तत्कालीन हिंदुस्तान का सबसे शक्तिशाली राजा बनने का प्रस्ताव दिया था।विश्व के इतिहास में ऐसा त्याग नही मिलता।तत्कालीन हिंदुस्तान में अकबर के बाद सबसे बड़ा,शक्तिशाली राजा के सिंहासन को त्यागकर 21 साल वनों में घास की रोटी खाना, महानता की पराकाष्ठा है। महाराणा की महानता इसमें है कि उन्होंने भारत की प्राचीन संस्कृति,सभ्यता,परम्परा को मध्यकाल में फिर से पुनर्जीवित किया . ये बात विल्कुल सत्य है कि उस सदी में राजस्थान ही सनातन धर्म का सूरज बचा था और महाराणा उस सूरज की सबसे बड़ी किरण थे. माना जाता है कि अगर महाराणा उस समय हार मान लेते तो भारत की स्थिति और दयनीय होती . अकबर के इरादे इतने बुलंद हो जाते की वो जो चाहता वही करता इस देश मे . लेकिन महाराणा ने ये नही होने दिया कुछ ही संसाधनों के साथ वो अकबर से भिड़ने को तैयार हो गए जिससे मेवाड़ के लोगों में एक सन्देश गया और वो भी इस लड़ाई में कूद पड़े. इनमें वे आदिवासी कोल ,भील भी थे, जो महाराणा 
प्रताप के हमेशा जीवन भर साथ रहे
भारत के अंग्रेजो से स्वतंत्रता के आंदोलन में क्रान्तिकारियो के लिये मेवाड़ की धरती, चित्तौड़गढ़ और हल्दीघाटी तीर्थस्थल बन चुके थे। क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति के हर सदस्य के लिये मेवाड़ की तीर्थ यात्रा कर चित्तोड़ के विजय स्तम्भ के नीचे शपथ लेना अनिवार्य था। भारतवर्ष से देशभक्त, क्रन्तिकारी हल्दीघाटी की मिट्टी का तिलक करने आते थे। वस्तुतः अंग्रेज़ो की दासता से मुक्ति दिलाने के लिये महाराणा प्रताप के नाम ने जादू का काम किया। महाराणा प्रताप विशाल ब्रितानी साम्राज्य से जूझते राष्ट्रभक्तो के लिये आदर्श और प्रेरणापुंज थे।
कर्नल टॉड ने ही लिखा है कि “अरावली पर्वत श्रृंखला का कोई पथ ऐसा नही है जो प्रताप के किसी कार्य से पवित्र ना हुआ हो- किसी शानदार विजय या उससे भी शानदार पराजय से। हल्दीघाटी मेवाड़ की थर्मोपल्ली है और दिवेर का मैदान उसकी मैराथन है।”
महाराणा प्रताप के सबसे बड़े प्रशंसक और अनुयायी, महान स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपनी पत्रिका ‘प्रताप’ का पहला अंक महाराणा प्रताप को समर्पित करते हुए लिखा था की “महान् पुरुष, निस्‍संदेह महान्, पुरुष। क्या भारतीय इतिहास के किसी खून में इतनी चमक है? स्‍वतंत्रता के लिए किसी ने इतनी कठिन परीक्षा दी? जननी जन्‍मभूमि के लिए किसने इतनी तपस्‍या की? देशभक्‍त, लेकिन देश पर अहसान जताने वाला नहीं, पूरा राजा, लेकिन स्‍वेच्‍छाचारी नहीं। उसकी उदारता और दृढ़ता का सिक्‍का शत्रुओं तक ने माना। शत्रु से मिले भाई शक्तिसिंह पर उसकी दृढ़ता का जादू चल गया। अकबर का दरबारी पृथ्‍वीराज उसकी कीर्ति गाता था। भील उसके इशारे के बंदे थे। भामाशाह ने उसके पैरों पर सब कुछ रख दिया। मानसिंह उससे नजर नहीं मिला सकता था। अकबर उसका लोहा मानता था। अकबर का दरबारी खानखाना उसकी तारीफ में पद्य रचना करना अपना पुण्‍य कार्य समझता था। जानवर भी उसे प्‍यार करते थे और घोड़े चेतक ने उसके ऊपर अपनी जान न्‍यौछावर कर दी थी। स्‍वतंत्रता देवी का वह प्‍यारा था और वह उसे प्‍यारी थी। चित्‍तौड़ का वह दुलारा था और चित्‍तौड़ की भूमि उसे दुलारी थी। उदार इतना कि बेगमें पकड़ी गयीं और शान-सहित वापस भेज दी गयीं। सेनापति फरीद खाँ ने कसम खायी कि प्रताप के खून से मेरी तलवार नहायेगी। प्रताप ने उस सेनापति को पकड़ कर छोड़ दिया। अपने से कहीँ विशाल और ताकतवर साम्राज्य को ना केवल चुनौती देकर बल्कि सफलतापूर्वक अपना राज्य वापिस जीतकर देश के सबसे ताकतवर बादशाह का घमंड चूर चूर कर दिया”
गणेश शंकर विद्यार्थी जी आगे लिखते हैँ- “प्रताप! हमारे देश का प्रताप! हमारी जाति का प्रताप! दृढ़ता और उदारता का प्रताप! तू नहीं है, केवल तेरा यश और कीर्ति है। जब तक यह देश है, और जब तक संसार में दृढ़ता, उदारता, स्‍वतंत्रता और तपस्‍या का आदर है, तब तक हम क्षुद्र प्राणी ही नहीं, सारा संसार तुझे आदर की दृष्टि से देखेगा। संसार के किसी भी देश में तू होता, तो तेरी पूजा होती और तेरे नाम पर लोग अपने को न्‍योछावर करते। अमरीका में होता तो वाशिंगटन और अब्राहम लिंकन से तेरी किसी तरह कम पूजा न होती। इंग्‍लैंड में होता तो वेलिंगटन और नेल्‍सन को तेरे सामने सिर झुकाना पड़ता। स्‍कॉटलैंड में बलस और रॉबर्ट ब्रूस तेरे साथी होते। फ्रांस में जोन ऑफ आर्क तेरे टक्‍कर की गिनी जाती और इटली तुझे मैजिनी के मुकाबले में रखती। लेकिन हाँ! हम भारतीय निर्बल आत्‍माओं के पास है ही क्‍या, जिससे हम तेरी पूजा करें और तेरे नाम की पवित्रता का अनुभव करें! एक भारतीय युवक, आँखों में आँसू भरे हुए, अपने हृदय को दबाता हुआ लज्‍जा के साथ तेरी कीर्ति गा नहीं-रो नहीं, कह-भर लेने के सिवा और कर ही क्‍या सकता है?”भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानी प्रताप सही में भारत में प्रबल स्वतंत्रता की भावना के प्रतीक हैँ। सैकड़ो सालो से भारत के हर एक स्वतंत्रता प्रेमी एवम् स्वाभिमानी व्यक्ति के आदर्श रहे हैँ। अपने जीवनकाल में ही बिना कोई नया राज्य जीते वो देश भर में जन जन के नायक बन चुके थे। उनकी कीर्ति उनके विरुद्ध लड़ने वाले मुग़ल सैनिको ने ही देश के कोने कोने में फैला दी थी। मेवाड़ का सिसौदिया वंश सैकड़ो साल से भारत के हिन्दुओ को संबल प्रदान करता रहा था, उन्हें नेतृत्व देता रहा था, गया और प्रयाग जैसे तीर्थो की मुक्ति के लिये लड़ता रहा था, उन्हें हिंदुआ सूर्य की उपाधि दी गई थी। पूरा देश महाराणा प्रताप के संघर्ष को टकटकी लगाए देख रहा था। मुगल सल्तनत सिर्फ इतना चाहती थी की मेवाड़ के राणा को सिर्फ एक बार अपनी अधीनता स्वीकार करवाना चाहता था, वो इसके लिए इतना प्रलोभन देने और झुकने को तैयार थे जो कभी किसी को नही दिया गया लेकिन प्रताप को पता था वो पूरे देश के हिन्दुओ के स्वाभिमान के प्रतीक हैं। उन्होंने लाखो कष्ट सहे लेकिन किसी भी कीमत पर झुकना मंजूर नही किया। क्योंकि वो सिर्फ राज्य के लिये नही बल्कि देश के स्वाभिमान के लिये लड़ रहे थे।स्वाधीनता और स्वाभिमान के इस संघर्ष में मेवाड़ की भूमि ने जो सहा उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। दशको तक मेवाड़ में अन्न का दाना नही उपजा। पूरा मेवाड़ युद्ध का मैदान बना हुआ था। सब तरफ भुखमरी और मार काट थी, ऐसे में सब साथ छोड़ जाते हैं लेकिन मेवाड़ ने प्रताप का साथ कभी नही छोड़ा। मेवाड़ की जनता प्रताप के पीछे चट्टान की तरह खड़ी रही। कभी कोई शिकवा नही किया। ऐसी स्वामिभक्ति और प्रतिबद्धता सिर्फ प्रताप जैसे अद्वितीय व्यक्तित्व का स्वामी ही कमा सकता है जिसकी आभा से उसके शत्रु भी उसके कायल हो जाते थे।महाराणा प्रताप की कहानी सैकड़ो सालो तक जन जन में लोकप्रिय रही। मेवाड़ से सुदूर क्षेत्रो में शायद ही कोई होता था जो प्रताप, मेवाड़, चित्तोड़, चेतक, भामाशाह आदि को ना जानता हो। हल्दीघाटी का युद्ध इतिहास के मानको की दृष्टि से बहुत ही छोटा युद्ध था लेकिन उसकी प्रसिद्धि इतनी हुई की भारत में शायद ही कोई हो जो हल्दीघाटी के बारे में ना सुना हो। यहां तक की देश में कई जातियां और उपजातिया जिनका प्रताप, राजपूत जाती, चित्तोड़ या मेवाड़ तक से कभी कोई संबंध ना रहा हो वो भी किसी ना किसी तरह अपने को इस संघर्ष से जोड़ने की कोशिश करती रही।भगवान राम के वंश में जन्मे महाराणा प्रताप ने त्याग, बलिदान, स्वाभिमान, स्वतंत्रता के प्रति असीम आग्रह का जो आदर्श प्रस्तुत किया उसकी मिसाल दुनिया के किसी इतिहास में मिलना मुश्किल है। इसीलिए उन्हें महान कहा जाता है। जिन लोगो को उनकी महानता पर शंका है उनका ऐतिहासिक ज्ञान निश्चित ही बहुत कम है। गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने ठीक ही लिखा था की प्रताप अगर किसी और देश में होता तो उसे लिंकन, वेलिंगटन, मेजिनी, जोआन ऑफ़ आर्क जैसा सम्मान मिलता लेकिन यह देश प्रताप जैसे वीरो के लायक ही नही है।
देश भक्ति, स्वाभिमान, स्वतंत्रता, बलिदान, शौर्य, पराक्रम, सहिष्णुता के प्रतीक, क्षत्रिय कुलभूषण, हिंदुआ सूरज, एकलिंगजी के परम भक्त , मेवाड़ के गौरव महाराणा प्रताप सदा याद किए जायेंगे जब तक 
सूर्य और चन्द आकाश मे हैं..वे हमारे पूज्य दॆव से कम नही इस अवसर पर विधायक दादरी तेजपाल मास्टर , हरि ओम सिसोदिया बिसाहडा ,वेद प्रकाश चौहान ,क्षेत्रपाल ,राजवीर सिंह अकेला, सेवानंद प्रधान रसूलपुर, राज सिंह राणा गंभीर सिसोदिया , रामकुमार सिसोदिया प्रधानाचार्य राणा संग्राम सिंह इंटर कॉलेज बिसाहडा ,बॉबी ठेकेदार, दीनदयाल शर्मा ,ब्रह्मपाल नंबरदार ,देवेंद्र राणा रसूलपुर ,बिजेंदर सिंह चौहान दादूपुर, मास्टर अनिल राणा सीदीपुर ,हरीश सिसोदिया ततारपुर व गब्बर सिसोदिया रसूलपुर उपस्थित रहे


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