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उम्र के साथ साथ : राजेश बैरागी

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


शौक और आदतों का उम्र से क्या रिश्ता है? सबसे अच्छा समय बचपन है जब जिम्मेदारियों का बोझ कोई और ढो रहा होता है और गलतियों की भी आरती उतारी जाती है। होशोहवास में जवानी सबसे मधुर बेला जब जो चाहा जाए वही हासिल करने की क्षमता होती है। परंतु उम्र के तकाजे इच्छाओं पर पहरा देते हैं। एक पत्रकार मित्र अपनी कार में अक्सर हनी सिंह टाइप छिछोरे गायकों के विकृत गीत बजाते थे। पूछने पर बताया कि ऐसा वो जवान बने रहने के लिए करते हैं। हालांकि वो खुद छिछोरे नहीं थे परंतु जवानी की भूख का क्या करें। कुबेर नाथ राय ने अपने एक ललित निबंध में लिखा,-कनपटी के ऊपर पकने वाले बाल असुंदरता के प्रतीक नहीं हैं बल्कि ये बाल तो कान में बताते हैं कि अब वो उम्र नहीं रही,अब जो भी करो जिम्मेदारी से करो।"स्मार्ट फोन फिर बूढ़ा नहीं होने देना चाहते। ज्यादा से ज्यादा मेगा पिक्सल की ताकत लेकर स्मार्ट फोनों के कैमरे अच्छे अच्छों की सेल्फी खिंचवा रहे हैं। औरत हो या मर्द अच्छे खासे मुंह के ढांचे को बिगाड़ कर चोंच बना रहे हैं। युवाओं के मुकाबले उम्रदराज लोग पीछे नहीं हैं। पहले मेला, नुमाइश या शादी ब्याह में फोटो खिंचवाने का रिवाज था। फोटो एक यादगार है, धरोहर भी। परंतु रोजाना और चोंच बनाकर कैमरे में क़ैद होना क्या बताता है कि अभी बाकी हैं हसरतें बहुत, उम्र न रही तो क्या। शायद यह एक मनोविकार है जिसे कैमरे नुमा यंत्र ने हवा दे दी है।


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