फ्यूचर लाइन टाईम्स
तालीम ज़िंदगी की है वक़्त से ही पाई ।
कभी ख़ुशियों के पल हैं होते,कभी साथ है तन्हाई।।
कभी साथ साथ चलते,करते थे कितनी बातें।
आज चल रहीं हूँ तन्हा बस याद तेरी आई ।।
ये रोज के नज़ारे हज़ार नेमतें हैं ।
कभी गुल खिलें हैं सारे,कभी खिजां चली आई।।
ये ख़्वाब तेरे मेरे जो हो सकें ना पूरे ।
नही अफ़सोस कोई इनका,ये बात किस पे आई।।
तालीम वक़्त ने दी मुझको लगा के ठोकर
नहीं कोई आरज़ू है,ठोकर है जब से खाई।
स्वरचित
निशाअतुल्य
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