फ्यूचर लाइन टाईम्स
किसी व्यक्ति को जन्म से बड़ा माना जाए या कर्म से। शिरडी के साईं बाबा का जन्म कहां हुआ यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है। परंतु जब सरकार कर्म के स्थान पर जन्म को महत्व देने लगे तो पाथरी की याद आती है। सांई बाबा का जन्म स्थान पाथरी बताया जाता है। महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार ने सौ करोड़ की लागत से पाथरी का विकास कराने की घोषणा की है। किसी क्षेत्र के लिए इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। परंतु उद्धव ठाकरे शायद सांई के साम्राज्य को शिरडी से आधा बांटना चाहते हैं। शिरडी में प्रतिवर्ष लगभग तीन सौ करोड़ रुपए का चढ़ावा चढ़ता है। इसमें लगभग बीस किलो सोना और तीन सौ किलो चांदी शामिल होती है। शिरडी साईं ट्रस्ट के पास डेढ़ हजार करोड़ रुपए मियादी जमा में सुरक्षित हैं। इस ट्रस्ट द्वारा जनहित में किये जा रहे कार्यों की जानकारी मेरे पास नहीं है परंतु कोई जनहितकारी कार्य चर्चित भी नहीं है। सांई गरीबों की उम्मीद हैं तो अमीरों के संरक्षक। बॉलीवुड के तमाम बड़े दिग्गज शिरडी में सिर झुकाते हैं। ऐसे उद्योगपतियों की संख्या भी कम नहीं है। लगभग चालीस वर्ष पहले तक चित्रों में फटे कपड़ों में नजर आने वाले सांई का चोला बदल चुका है। उनके भक्त उन्हें सोने का मुकुट और सोने का सिंहासन भेंट करते हैं। मेरा मानना है कि सांई एक साधारण इंसान थे जिनकी अजीबोगरीब हरकतों को वहां के सेठों ने अपने फायदे में बदल लिया था। आर्य समाज उन्हें एक विक्षिप्त व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है। अभी हाल में हिन्दू धर्माधिकारियों ने उन्हें भगवान मानने पर कड़ा ऐतराज जताया था।नया बखेड़ा सरकार ने खड़ा किया है। इससे सांई बाबा की महिमा घटेगी ही। यह हिंदुवादी संगठनों के हक में होगा।
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