फ्यूचर लाइन टाईम्स
मुझे याद है लगभग २७ वर्ष पूर्व मेरे पत्रकार मित्र मोहम्मद आजाद ने दैनिक जागरण में नोएडा में पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू होने की संभावना और इसकी यहां जरूरत होने से संबंधित समाचार छापा था।तब हमने इस विचार को ही हवा में उड़ा दिया था। अब वह विचार साकार होने जा रहा है। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार नोएडा के साथ लखनऊ में भी पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू करने का सैद्धांतिक फैसला ले चुकी है, आदेश कभी भी जारी हो सकता है। सूत्रों के मुताबिक महानिरीक्षक स्तर का पुलिस अधिकारी कमिश्नर के पद पर नियुक्त किया जायेगा और पुलिस कमिश्नरी के दायरे में पुलिस को बहुत से सिविल प्रशासन के अधिकार भी सौंप दिए जाएंगे। आखिर इस नई व्यवस्था से पुलिसिंग अथवा नागरिक सुरक्षा में क्या खास बदलाव आ सकते हैं? यह जानने के लिए हमें पहले से इस व्यवस्था से आवृत्त शहरों का आकलन करना चाहिए। दिल्ली, मुंबई, गुरुग्राम समेत 71 शहर देशभर में पुलिस कमिश्नरी प्रणाली से संचालित हैं। दिल्ली, मुंबई,गुरुग्राम में अपराध के आंकड़े दूसरे शहरों को मात देते हैं।हर जगह पुलिस का रवैया लापरवाही भरा है। एक सच यह भी है कि देशभर की पुलिस कार्यों के अधिभार से चर्रा रही है।उसे योग, ध्यान से चुस्त करने के टोटके तो किये जाते हैं परंतु असल समस्या कि उसकी ड्यूटी के निर्धारित घंटे, उसके आराम के बारे में कोई बात करने को भी तैयार नहीं है। पुलिस व्यवस्था सुधारने को प्रकाश सिंह जैसे विशेषज्ञों की अनेक रिपोर्ट कहीं धूल खा रही हैं। पुलिस पर राजनेताओं के अनैतिक प्रभाव को समाप्त करने के लिए विचार करने की किसी की औकात नहीं है। कानून-व्यवस्था और जांच को अलग-अलग करने के बारे में कोई प्रस्ताव लंबित भी नहीं है। यह सब पुलिस कमिश्नरी प्रणाली में भी ज्यों का त्यों जारी रहने वाला है। तो क्या सिर्फ व्यवस्था का नाम बदला जायेगा? ईश्वर करे कि मेरी आशंकाएं निर्मूल साबित हों।
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