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खाना मजबूरी है, शौक था कभी : राजेश बैरागी

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


अपने बच्चों के लिए दूध खरीदने वालों की हसरतें मर चुकी हैं। बच्चों को दूध एक मात्रा में चाहिए।कम से कम एक पाव दूध तो एक बच्चे को मिलना चाहिए।दूध की दर उसकी शुद्धता को तय करती है।आज पुरानी दिल्ली के एक घनी आबादी वाले मोहल्ले में एक दूध की दुकान पर बैठे रहने के दौरान इस सच्चाई का अहसास हुआ। वहां 46 ₹ लीटर दूध बेचा जा रहा था।लगे बंधे ग्राहक आते, अपना बर्तन आगे करते और दूध लेकर चल देते। उनकी आंखों के सामने टब में जो दूध था वह शुद्ध नहीं था। उसमें और कुछ ना सही पानी तो था ही।दूध में पानी क्यों मिलाया जाता है? इससे दूध की मात्रा बढ़ जाती है,दर कम हो जाती है। इससे दूध खरीदने वालों को राहत मिलती है। सरकार एक विभाग बनाकर अपमिश्रण करने वालों पर कार्रवाई करती रहती है।आज गौतमबुद्धनगर के जिलाधिकारी डॉ बी एन सिंह ने खाद्य सुरक्षा और औषधि प्रशासन विभाग के अधिकारियों को फिर कड़े निर्देश दिए। उन्होंने अपर जिलाधिकारी प्रशासन की देखरेख में खाद्य अपमिश्रण एवं अधोमानक दवाईयों की बिक्री पर रोक लगाने के लिए अभियान चलाने का आदेश दिया। गौतमबुद्धनगर दिल्ली से सटा हुआ जिला है। ऊपर जिक्र की गई दूध की दुकान दिल्ली में है। क्या वैसी दुकान गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद या देश के दूसरे हिस्सों में नहीं हैं? उनपर बिकने वाली खाद्य सामग्री का स्तर क्या है।नामी निर्माताओं के खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता क्या संदेह से परे है?आज खाना शौक नहीं मजबूरी है। सूखी रोटी से पिज्जा बर्गर तक जो भी खाया जा रहा है उसकी गुणवत्ता को लेकर कोई सवाल नहीं है। मालूम है कि कुछ भी शुद्ध नहीं है। शुद्धता अब बेमानी हो चुकी है। दवाईयों का सेवन मजबूरी है। अधोमानक दवाईयों का सेवन उससे बड़ी मजबूरी है। जहां पता है उस दूध को शुद्ध रूप में खरीदना संभव नहीं है, जहां पता नहीं है उन दवाओं के लिए निर्माताओं की नैतिकता पर सेहत का बोझ है। आहार विशेषज्ञ डाइटीशियन क्या सलाह देते हैं यह महत्वपूर्ण नहीं है, बाजार क्या खाने को देता है,सारा दारोमदार उसी पर है।


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