फ्यूचर लाइन टाईम्स
आपने अंतिम बार कहानी कब सुनी थी? यह सवाल थोड़ा अटपटा है।
क्योंकि इंटरनेट के मायाजाल में चौबीसों घंटे जो परोसा हुआ मिल रहा है हम उसमें से अधिकांश को कहानी ही समझते हैं। मैं जिस कहानी का किस्सा लेकर बैठा हूं वह दादी-नानी के मुंह से सुनाई जाती है। वह कहानी बच्चे गोद में बैठकर सुनते थे।आज मैंने वह कहानी सुनी। चार वर्षीय धेवती(बेटी की बेटी) बहुत शरारती है परंतु किसी बात पर विचलित होकर जोर जोर से रोने लगना बाल स्वभाव है।वह काफी देर से रो रही थी तो उसकी नानी ने उसे कहानी सुनाई। स्मार्टफोन से बखूबी परिचित वह नादान बच्ची नानी की कहानी को न केवल मंत्रमुग्ध हो कर सुन रही थी बल्कि बीच बीच में मन में उठने वाले सवालों का जवाब भी मांग लेती थी। पत्नी जी की कहानी कहने की कोई योग्यता नहीं है। परंतु नानी को किसी योग्यता की क्या जरूरत। उसके समक्ष बच्चे को बहलाने का लक्ष्य हो तो वह दुनिया की सबसे सुंदर कहानी सुना सकती है। स्मार्टफोन ने दादी-नानी की इस कला का अपहरण कर लिया है तो क्या? यदि आधी उम्र बीतने के बाद प्रकाशी और चंद्रो तोमर शूटर दादी बन सकती हैं तो तीसरी पीढ़ी को कहानी सुनाना तो उल्टे हाथ का काम है।बस इसके लिए स्मार्टफोन के सहज, सस्ते और आभासी सहारे को छोड़ना होगा। फिर पता चलेगा कि कहानी अभी खत्म नहीं हुई है।
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