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जिनके घर शीशे के हों : राजेश बैरागी

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


गौतमबुद्धनगर के पुलिस कप्तान का आचरण असाधारण सा है। उन्हें सुपर कॉप बनने की हसरत है। उन्हें किसी की मातहती करना ज्यादा पसंद नहीं है। गाजियाबाद में कार्यकाल के दौरान तत्कालीन जिलाधिकारी रितु माहेश्वरी से उनकी नहीं बनी सुना है इस पर दोनों के बीच तीखी खतोकिताबत भी हुई। यह संयोग मात्र है कि आज वह गौतमबुद्धनगर के पुलिस प्रमुख हैं तो रितु माहेश्वरी इसी जनपद के एक प्रमुख प्राधिकरण नोएडा की मुखिया हैं। अय्याशी का आरोप झूठा हो सकता है परंतु चार समकक्ष अधिकारियों के खिलाफ गोपनीय रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का पाप तो किया ही है। वैसे
ओहदेदारों का अय्याश, असभ्य व भ्रष्टाचारी होना कभी आश्चर्य की बात नहीं थी। तो भी उन्हें श्रेष्ठ, धर्मात्मा और न्यायी बताने का रिवाज है। एक स्थान से कदाचार के कारण हटाकर दूसरे स्थान पर नियुक्ति पाने वाले ओहदेदारों को भी ऐसा ही बताया जाता है। कुछ अफसर अच्छे भी होते हैं तो उन्हें सरकारें पसंद नहीं करतीं। इससे उनका सद् आचरण कुंठा से पीड़ित हो जाता है। परिणामस्वरूप उन्हें हर कोई चोर नजर आने लगता है। गौतमबुद्धनगर के पुलिस कप्तान का चरित्र मिला जुला है। उन्होंने अपने मातहत विभागीय अधिकारियों को निशाना बनाकर खुब वाहवाही लूटी परंतु व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।आधा दर्जन से अधिक पत्रकारों पर वज्र प्रहार किया परंतु मीडिया और पुलिस के रिश्तों में केवल चेहरे बदले,चाल और चरित्र वही है। मीडिया रोज नारे लगाता था,-एसएसपी का चक्र चला, अपराधियों में हड़कंप। यह कुछ प्रतिशत सच भी था। हालांकि यह भी सच है कि वैभव तो पतुरिया के पास भी हो सकता है परंतु कृष्ण होना आसान नहीं होता।यह तब और मुश्किल हो जाता है जब हमारा आचरण नैतिकता के मानदंड पर खरा न हो।


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