फ्यूचर लाइन टाईम्स
नकली साधु, सन्त व महन्त बाबा !
ऋषि दयानंद ने हरिद्वार कुम्भ मेले पर पाखंड खण्डनी पताका गाडी थी और कथित साधुसंतों से पूछा था -''गंगा वा संगम में स्नान करने से पाप धुलते हैं वा मुक्ति होती है तो मेंढक मछलियों मगरमच्छों की मुक्ति क्यों नहीं हो जाती ?'' कथित साधु सन्तों व उनके भक्तों को कोई जबाब तो नहीं सूझा परन्तु उन पर ईंट रोडे बरसाने लगे । कुम्भ में अजीब अजीब तरह की मूढ़ताएं चलती हैं। उनमें सबसे बड़ी मूढ़ता तो नागा साधु हैं। उनमें साधुता तो होती ही नहीं; साधुता का लेशमात्र भी नहीं है उनमें । जो हाव भाव गुंडों के चेहरों पर होते हैं, वही हाव भाव इन नागा साधुओं के चेहरों पर होते हैं। जरा भी भेद नहीं है। वही दुष्टता, वही दंभ, वही उपद्रव की वृत्ति। हर कुंभ के मेले में जो उपद्रव होते हैं, झगड़े होते हैं, खून-खराबे होते हैं, वे ज्यादातर नागा साधुओं की वजह से ही होते हैं। कोई और देश होता तो इन नागा साधुओं को पकड़ कर पागलखाने में रख दिया जाता, इनका इलाज किया जाता, इनको बिजली के शॉक दिए जाते ! ये होश में नहीं, इन्हें पता ही नहीं ये क्या कर रहे हैं, ये विक्षिप्त हैं। हमारे देश में ऐसे ऐसे विक्षिप्त साधुओं को महात्मा कहा जाता है ,परमहंस समझा जाता है, मुक्त समझा जाता है । ऐसे पागलों के पास भीड़ की भी कमी नहीं होती ।
इसका कोई विरोध भी नहीं होता । कहा जाता है यह सदियों पुरानी परंपरा है, यह परंपरावादी देश है, यह रूढ़िवादी देश है,यहाँ चहुं ओर पाखंड का ही बोलबाला है,यहां कोई भी मूर्खता पुरानी होनी चाहिए,बस फिर ठीक है। जितनी पुरानी होगी उतनी ज्यादा ठीक है । यहां आस्था की आड में हर प्रकार का अन्धविश्वास पाखंड व भेडचाल जायज है, भोले भाले जानवरों को मार कर खाना जायज है, पत्थर की मूर्तियों को दूध से नहलाना जायज है, उनका हार श्रंगार जायज है, ज्योतिष के नाम पर जनता को ठगना जायज है !!! तीर्थ स्थलों पर रहने वाले ज्यादातर साधु अनपढ गंवार होते हैं, गांजा भांग पीते हैं, कुछ तो अपराध वृत्ति के लोग भी भगवा पहन कर घूमते रहते हैं , उन्हें गायत्री मंत्र तक बोलना नहीं आता । इन सबको पकड कर शिक्षित करने की अत्यन्त आवश्यकता है । कोई समय था नदियों के तट पर वेदों के विद्वानों व योगियों का संगम होता था, वे बडे बडे यज्ञ व वेदों उपनिषदों पर प्रवचन करते थे । जनता उनके सत्संग से धर्म अर्थ काम व मोक्ष की शिक्षा प्राप्त कर अपऩे जीवन को सफल करती थी ।
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