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बेकाबू जानलेवा प्रदूषण : राजेश बैरागी

फ्यूचर लाइन टाईम्स 
 


विशेषज्ञ बताते हैं कि जन जीवन के लिए वायु गुणवत्ता सूचकांक का ५० से नीचे रहना आवश्यक है। परंतु दिल्ली और आसपास के शहरों में पिछले कई महीनों से वायु प्रदूषण का स्तर गंभीर ऊंचाई पर बरकरार है। क्या कोई उपाय है? क्या सरकारों के भरोसे पर जिंदा रहा जा सकता है? द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में अमेरिका ने जापान के दो शहरों पर हाइड्रोजन बम गिराए थे।मौत की चपेट में आने से बच गए हजारों जापानियों की हालत बेहद खराब थी। विश्वभर से आये चिकित्सकों के दल उनके इलाज में जुटे थे। परमाणु विकिरण से घायल जापानी घावों की असहनीय पीड़ा से चीखते थे तो चिकित्सक उन्हें दिलासा देते थे क्योंकि इलाज संभव नहीं था। ऐसे में एक लड़की ने खुद को चाकू घोंपकर खुदकुशी कर ली। चिकित्सक चिल्लाए,-यह तुमने क्या किया?दम तोड़ रही लड़की के पिता ने कहा,-उसने इलाज खोज लिया है। वापस प्रदूषण पर लौटते हैं।सांस लेना मुश्किल है। गंभीर बीमारियां घेर रही हैं। चिकित्सक असम्भव जैसे उपाय बता रहे हैं मसलन, बाहर न निकलें जैसे उपाय। क्या हम सामूहिक आत्महत्या के मार्ग पर बढ़ रहे हैं? एक रिपोर्ट के अनुसार समूचे एनसीआर में प्रदूषण पर काबू पाने के लिए केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ४६ टीमें काम कर रही हैं। राज्यों के कई विभागों की टीमें अलग से सक्रिय हैं। कुल जमा ९१ बैठकें प्रदूषण नियंत्रण के लिए जिम्मेदार एजेंसियों द्वारा की जा चुकी हैं। इसके बावजूद वायु प्रदूषण को काबू नहीं किया जा सका है। जापानियों से हम अपनी तुलना कैसे कर सकते हैं। उन्होंने तो इलाज खोज लिया था।


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