फ्यूचर लाइन टाईम्स
झूठ मात्रात्मक भी होता है। तर्कों से गढ़ा गया झूठ पूरा झूठ नहीं होता। महाभारत में युधिष्ठिर ने द्रोणाचार्य से अश्वत्थामा को लेकर क्या बोला था। तार्किक रूप से उन्होंने सच बोला था। परंतु द्रोणाचार्य को जो सुना वह सच नहीं था।आधे झूठ की यही विशेषता है। यह व्यवहार में होने के बावजूद पकड़ में नहीं आता। यहां सच झूठ के सामने हार जाता है। आधा झूठ पूरे झूठ से बलवान होता है। दरअसल सत्य का बल आधे झूठ को अमोघ बनाता है। यह कुल्हाड़ी में लकड़ी का हत्था पड़ने जैसा है। यह सत्य की हत्या कर देता है। इसका उपचार संभव नहीं होता। तर्कों की पटरी पर सरपट दौड़ने वाला आधा झूठ दिव्यांग ही होता। दिव्यांग का अर्थ कभी अपाहिज नहीं था। दिव्यांग का अर्थ हमेशा ऐसे अंगों वाले से है जो सामान्य से अलग है। क्या झूठ के दिव्यांग होने पर अभी भी कोई संदेह है?
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