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अफसाने झूठ भाग-३ , यह झूठ है, झूठ है,झूठ है ! राजेश बैरागी

फ्यूचर लाइन टाईम्स
बाबा तुलसीदास ने मानस में जोर देकर कहा,-झूठो है,झूठो है,झूठो है संसार सब।मलिक मुहम्मद जायसी भी कहां पीछे रहने वाले थे। उन्होंने भौतिक संसार को गोरखधंधे की संज्ञा दी। अन्यान्य अध्यात्मवेत्ताओं ने भी संसार को असार अथवा मिथ्या बताया है। झूठ का ऐसा विशाल, विकराल रूप है।अमूमन दोपहर के समय हर जिला अदालत में यह श्रेष्ठ वाक्य गूंजता रहता है। यह समय जमानत प्रार्थना पत्रों पर अदालतों के विचारण का होता है। वकील लोग (बचाव पक्ष के) जोर जोर से चिल्लाकर अदालत को विश्वास दिलाना चाहते हैं कि जो उसे (अदालत को) बताया गया है वह झूठ है। इसके विपरीत अभियोजन पक्ष उतना ही जोर इस बात पर लगाता है कि यही सत्य है। हालांकि बचाव पक्ष का इशारा समझ में आने पर अभियोजन कुछ इस प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त करता है,-हालांकि यह सच है परंतु मैं इसके सच होने की गारंटी नहीं लेता। अदालत झूठ-सच के झमेले में नहीं पड़ती।उसे कानून की देवी के हाथों में थमाई गई तराजू के पलड़ों के जिस करवट बैठने की प्रतीक्षा होती है।जो पलड़ा झुका, न्याय अपना हेतु उसी से हासिल करता है। झूठ कहीं है या नहीं, यह शोध का विषय नहीं है। हमेशा सत्य की खोज की जाती रही है। झूठ तो था, है और रहेगा। यही सत्य है।


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