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अफसाने झूठ (भाग-१) झूठ दिव्यांग होता है ! राजेश बैरागी

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


सुनते हैं झूठ के पांव नहीं होते। इसके बावजूद यह तेज दौड़ता है। दौड़ता नहीं बल्कि उड़ता है। यानी झूठ ऐसा प्राणी है जिसके सिर पर पांव नहीं होते, केवल पर ' पंख ' होते हैं। झूठ उड़ाया जाता है, झूठ चलाया भी जाता है। परंतु इस मामले में भी यह अकेला प्राणी ही है कि जो बगैर पैरों के चलता है। बोलने वाला बोलकर भूल जाता है इसीलिए झूठ बोलने वाले को याददाश्त बरकरार रखनी पड़ती है। हां तो झूठ बोलने वाला बोलकर भूल भी सकता है परंतु झूठ आगे बढ़ता रहता है और जब व्हाट्स ऐप के मैसेज की तरह लौटकर फिर उसी के पास आता है तो दोनों एक दूसरे को अपरिचितों की तरह देखने लगते हैं। कहते हैं सच कभी मरता नहीं। तो क्या झूठ को अकाल मौत आती है? झूठ कभी नहीं मरता। झूठ उजागर होता है और हमेशा याद रहता है। झूठ तो तब भी नहीं मरता जब उसे बोलने वाला भी परलोक सिधार जाता है। दिव्यांग होने के बावजूद यह सहानुभूति या अनुदान का पात्र नहीं होता।इसे तिरस्कार मिलता है परंतु इसका व्यवहार करने वाला सम्मान का पात्र भी हो सकता है। हालांकि 'अपराध से नफ़रत करो-अपराधी से नहीं' वाला सिद्धांत झूठ पर लागू नहीं होता। झूठ से नफ़रत करने वाले वास्तव में झूठे से नफ़रत करते हैं। इस प्रकार झूठ चलता रहता है।इसकी गति वायु से तेज है। यह अकेले में बोला जाता है और भरी सभाओं में पहुंच जाता है,भरी सभाओं में बोला गया झूठ घर घर पहुंच जाता है।


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