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योगदर्शन : काव्य - व्याख्या 24 साधनपाद : सूत्र 5-8

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


अनित्याशुचिदुःखानात्मसु 
नित्यशुचिसुखात्मख्यातिरविद्या ।। 5 ।। यक्ष


सूत्रार्थ


अविद्या है अनित्य में नित्य, अशुचि में शुचि,
दुःख में सुख और अनात्मा में आत्मा का भाव रखना ।।


दोहा 


अनितमें नित मान है, 
और अशुचिमें शुचि ज्ञान।
दुःखहूमें सुख मानता,
 देह आत्मा ज्ञान।।
होत विपर्यय ज्ञान इमि, 
तबहि अविद्या आय। 
करत रहत उत्पात नित, 
बिन वैराग्य न जाय।।5।


Sutra/ Aphorism


Avidya is mistaking non - eternal as eternal , impure as pure, pain as pleasure and non - Atman as Atman.


भावार्थ 


क्षणभंगुर शरीर के लिये,
सौ-सौ वर्षों का साधन जुटाना,
मलमूत्र से भरे शरीर को, 
सुन्दर समझ मोहित हो जाना,
 ह्रासकारी वासनाओं में, 
इन्द्रिय सुख का पाना,
शरीर के सुख-दुःख पर, 
स्वयं को सुखी-दुःखी पाना
है अनित्य में नित्य, 
अशुचि में शुचि, दुःख में सुख 
अनात्म में आत्मभाव ।
यही है अविद्या, जिसका साधक को जीवन से मिटाना है प्रभाव ।


अविद्या ही है आत्मा के बन्ध का कारण ।
इसी ने अपने चहुँमुखी कलेवर में किया मन को धारण ।
जब तक करता रहे सुख-दुःख व आत्म-अनात्म में प्रत्यारोपण ।
न हटा पाए आत्मा, अपने ऊपर से प्रकृति का आवरण ।।
पादपाठ


रूह और जिस्म का रिश्ता भी अजब है।
सारी उमर साथ रहे, लेकिन तुआरुफ़ न हुआ।।
                       --- सूफ़ी शायर 
    (तुआरुफ़ = परिचय =Introduction 


दृग्दर्शनशक्त्योरेकात्मतेवास्मिता ।। 6 ।।


सूत्रार्थ


अस्मिता है  -  दर्शनकर्त्ता तथा दर्शनशक्ति में
एकात्म-भाव रखना ।


दोहा 


दृक् और दर्शन शक्तिको, 
एक भाव जब होय।   
तबहि अस्मिता जानिये, 
देत महादुख सोय।। 
एक शक्ति है पुरुषकी, 
दर्शन बुद्धि जोइ। 
एक आत्म जब होत दोउ, 
जान अस्मिता सोइ।।6।।


Sutra/Aphorism


Asmita is the identification of the Seer (Purusha) with the instrument of seeing (Buddhi).


भावार्थ


चेतनस्वरूप आत्मा दृक् या द्रष्टा कहलाए,
दर्शन हेतु दर्शनशक्ति बुद्धि को काम में लाए।
मैं सुखी हूँ, मैं दुःखी हूँ, जब ऐसा भाव आत्मा में आए,
यह आत्मा-बुद्धि स्थिति-अभेद अस्मिता कहलाए ।।


 सुखानुशयी रागः ।। 7 ।।


सूत्रार्थ 


राग है सुख का सहवासी ।


दोहा 


सुख अभिलाषा राग है, 
तामें चित बस जाय। 
तब सुखहित नाना करम, 
धर्मअर्धम कराय।।7।।


Sutra/Aphorism


The attraction which accompanies pleasure is Raga. 
(Sukha is Sensory Pleasure).


भावार्थ 


आत्मा है सत्-चित् और परमात्मा सच्चिदानन्द;
आत्मा तत्पर रहे, सदा पाने में आनन्द;
पर प्रकृति प्रभाव से, सुख में भासे आनन्द ।
सुख है केवल इन्द्रियों की विषय-पसन्द; 
राग है सुख पाने की इच्छा, जो रहे विषयों में बन्द;
अन्ततः दुःख का कारण हो, बने उसी का फन्द ।।


विषयाें के भोग से, नहीं मिलती मन की तृप्ति ।
ईश सन्मुख होने पर, मिले राग से निवृत्ति ।।
पादपाठ


1 आनन्द = लज़्ज़त-उल-इलाहिम = Divine Bliss , Beatitude.


2 सुख  :  सु = सुहावना , ख = इन्द्रिय ; सुखं सुहितं खेभ्यः = 
     जो इन्द्रियों को सहावना लगे।
  = लज़्ज़त-उल-दुनिया =सांसारिक सुख ।
   दुःख  :  दु =बुरा , ख = इन्द्रिय ; जो इन्द्रियों को बुरा लगे।


3 न भोगाद् रागशान्तिमुनिवत्।
           -- सांख्य दर्शन 4.27
.(Lust does not get quenched by indulgence , even in Saints.


 दुःखानुशयी द्वेषः ।। 8 ।।


सूत्रार्थ 


द्वेष है दुःख का सहवासी ।


दोहा 


दुखसाधनको देखकर, 
होत चित्त में क्रोध। 
द्वेषरूप सो जानिये, 
रहत नहीं कछु बोध।।8।।


Sutra/Aphorism


The repulsion which  accompanies pain is Dvesha.


भावार्थ 


जीव विज्ञान व मनोविज्ञान भी, 
करें इस सत्यता को स्वीकार ।
प्राणिमात्र करें सुख का ग्रहण, 
पर करें दुःख का तिरस्कार ।
निरन्तर सुख की दौड़ में, 
जहाँ पावे दुःख का भाव ।
उसी पदार्थ या व्यक्ति प्रति, 
उत्पन्न हो द्वेष का भाव ।।
द्वेष-भाव है क्लेश, 
जो कारण मन के दुःख का ।
और अन्ततः कारण बने, 
आत्मा के बन्ध का ।।
पादपाठ


1 दुःखादुद्विजते सर्वः सर्वस्य सुखमीप्सितम्।


सभी दुःख से भागते हैं और सुख की कामना करते हैं


2 Man seeks pleasure and shuns pain.
                


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