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व्यक्ति अनेक होते हैं, जबकि जाति एक ही होती है

फ्यूचर लाइन टाईम्स 


मनुष्य और मनुष्यता, मोटे तौर पर ये दोनों शब्द एक जैसे दिखते हैं। परंतु दोनों में बहुत अधिक अंतर है। मनुष्य शब्द एक प्राणी के लिए प्रयोग होता है, जबकि मनुष्यता, यह शब्द पूरी मनुष्य जाति = करोड़ों मनुष्यों के लिए प्रयोग होता है। 


व्यक्ति अनेक होते हैं, जबकि जाति एक ही होती है। जो सभी व्यक्तियों में एक समान रूप से पाई जाती है। जैसे गौ एक व्यक्ति है। अर्थात एक प्राणी है, एक शरीर का नाम है। परंतु गोत्व यह जाति का नाम है, जो संसार की करोड़ों गौओं में एक समान रूप से पाया जाता है। उसी गोत्व जाति के कारण ही संसार भर की गौएँ, एक वर्ग में गौ वर्ग में पहचानी जाती हैं।  
इसलिए व्याकरण और दर्शन शास्त्रों का यह कहना है, कि व्यक्ति अनेक होते हैं, जबकि उनमें जाति एक होती है।
इसी प्रकार से मनुष्य यह, एक प्राणी का नाम है। जबकि मनुष्यता यह करोड़ों व्यक्तियों की एकरूपता के लिए प्रयोग किया जाता है। 
 गौ आदि पशु तो जन्म से ही अपने गोत्व जाति के लक्षण सीखकर आता है। इसलिए उसमें गोत्व या पशुता जन्म से ही होती है, वह लानी नहीं पड़ती।
 परंतु मनुष्य जन्म से सीखकर नहीं आता। उसे बहुत कुछ सिखाना पड़ता है। तब जाकर वह मनुष्यता जाति से युक्त होता है। यद्यपि आकार प्रकार से सारे मनुष्य भी एक जैसे होते हैं। फिर भी सबका आचरण एक समान न होने से, मनुष्यों में मनुष्यता दो प्रकार की हो जाती है। एक - शारीरिक आकार प्रकार की समानता। और दूसरी - उत्तम आचरणों की समानता। वास्तविक मनुष्यता तो उत्तम आचरणों की समानता का नाम है।
 आकार प्रकार तो सभी मनुष्यों का भी जन्म से एक जैसा है। परंतु उत्तम आचरण सबका एक समान न होने के कारण, सबको मनुष्य नहीं कहा जाता। बल्कि उनमें उत्तम गुणों को स्थापित करने के बाद ही वास्तविक मनुष्यता  कहलाती है।
मनुष्य का शरीर तो नाशवान है। यह  60/80/100 वर्ष में नष्ट हो जाता है। परंतु जो इसमें उत्तम आचरण रूप मनुष्यता है, वह तो तब तक रहेगी, जब तक मनुष्य नामक प्राणी संसार में जीवित है। इसलिए मनुष्य की अपेक्षा मनुष्यता अधिक मूल्यवान है,  जो कि सबको सुख देने का कारण है। इसलिए सच्चे मनुष्य बनें, मनुष्यता रूपी उत्तम आचरणों  को जीवन में धारण करें। इससे आप भी सुखी होंगे और दूसरों को भी सुख मिलेगा


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