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विचारधाराओं के विश्वविद्यालय : राजेश बैरागी

फ्यूचर लाइन टाईम्स 
जामिया में रविवार को हुए बवाल ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।


इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लोग कैमरों के आइने से हकीकत तलाश रहे हैं। हालांकि कैमरा एक उपकरण है जिसका अपना कोई पक्ष नहीं होता परंतु उसे थामने वाले हाथ किसी विचारधारा से बंधे होते हैं। मेरे लिए सभी धर्मों के पूजा स्थल जिस प्रकार श्रद्धेय हैं उनसे ज्यादा विश्वविद्यालयों के सामने से गुजरते हुए मेरा मस्तक झुक जाता है। इतने पवित्र स्थलों को राजनीति की दीमक लग गई है। सियासत के लोग यहां शोध और समाधान में जुटे छात्रों को अपने उद्योग का कच्चा माल समझते हैं। इसलिए विश्वविद्यालयों के परिसर राजनीति के अखाड़े बन गए हैं। वहां लाल दुर्ग को ढहाने के लिए भगवा चक्र चलाया जा रहा है। मुस्लिम लीग की काट के लिए हिंदू वाहिनी प्रवेश कर रही है। देश के कुछ विश्वविद्यालयों का जन्म धर्म के गर्भ से हुआ है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, बीएचयू और जामिया ऐसे ही उदाहरण हैं। जेएनयू में वामपंथ का बीज किसने डाला,यह जानना उतना जरूरी नहीं परंतु वहां पढ़ने वाले छात्र मेधावी होने के साथ-साथ एक समानांतर व्यवस्था के हामी भी हैं। ऐसे में पढ़ाई के साथ लड़ाई का माहौल तो रहेगा ही।रही सही कसर इन विश्वविद्यालयों के शिक्षक पूरी कर देते हैं जो निहित स्वार्थों के लिए छात्रसंघों का इस्तेमाल करते हैं। जामिया का बवाल छात्रों से इतर सियासत का धमाल है।जो पिछड़ गया वो आम आदमी पार्टी और कांग्रेस अब अपने हक के लिए आगे आए हैं। छात्र कच्चे माल की तरह केवल इस्तेमाल किए जा रहे हैं। उन्हें विचारधारा के लिए सजग होना चाहिए, सियासत के लिए सरल नहीं।


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